बागेश्वर। उत्तराखंड में पहाड़ की जनता को चिकित्सा के लिए अब केवल झाड़ फूंक करने वाले ओझाओं और
प्रदेश में इस समय 700 आयुर्वेदिक चिकित्सालय संचालित हैं, जिनमें से लगभग 600 अस्पतालों में चिकित्सक तैनात हैं। इनमें पिछले वर्ष लोकसेवा अयोग के माध्यम से भरे गए 450 चिकित्सक भी शामिल हैं, परंतु विडंबना यह है कि पर्वतीय जिलों के अस्पताल चिकित्सक विहीन पड़े हैं। इसका मुख्य कारण यही है कि पहाड़ के अस्पतालों में तैनाती से कतराने वाले चिकित्सकों ने या तो स्वयं को मैदानी क्षेत्र के चिकित्सालयों में संबद्ध कर लिया है या फिर किसी मेडिकल कालेज में। दुर्गम माने जाने वाले पिथौरागढ़, बागेश्वर, अल्मोड़ा, टिहरी, उत्तरकाशी, चमोली व रुद्रप्रयाग के स्वास्थ केन्द्रों से लगभग 27 चिकित्सादिकारियों को शासन स्तर पर उधमसिंहनगर और हरिद्वार जिलों के चिकित्सालयों में सम्बद्ध किया गया है। कुछ चिकित्सक राजधानी मुख्यालय में भी अटैच हैं। इसके अलावा जिला आयुर्वेदिक यूनानी अधिकारी स्तर से भी चिकित्साधिकारियों का अटैचमेंट सुविधाजनक क्षेत्रों के लिए किया गया है। यदि इस संख्या को जोड़ा जाय तो दुर्गम से सुगम क्षेत्र में अटैच किए गए चिकित्साधिकारियों की संख्या सौ का आंकड़ा पार कर जाएगी। परिणामस्वरूप इन चिकित्सकों का पहाड़ी क्षेत्रों के अस्पतालों से मात्र वेतन लेने का ही नाता है। वास्तव में वहां अधिकांश चिकित्सक विहीन पड़े हैं और पहाड़ी दुर्गम क्षेत्रों में रह रही लाखों की आबादी स्वास्थ सुविधा के लिए तरस रही है।
आयुर्वेदिक एवं यूनानी सेवा उत्तराखंड के निदेशक डा.अरुण कुमार त्रिपाठी से इस संबंध में बात की गई तो उनका कहना था कि उक्त चिकित्सकों को विशेष परिस्थितियों में ही अन्यत्र संबद्ध किया गया होगा। जिन चिकित्सालयों में पद रिक्त हैं, नए चिकित्सक मिलने पर वहां के लिए प्राथमिकता दी जाएगी।