नई दिल्ली। मोदी के राज में अब यह तमाशा आम है। आए दिन केंद्र सरकार का कोई न कोई मंत्री सांप्रदायिक उकसावे की बोली बोलता और अपने पद की शपथ को तार-तार करता देखा जाता है। इसके बावजूद, मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री, रामशंकर कठेरिया के आगरा के मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने वाले भाषण को, अधिकम गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
कठेरिया आगरा में विहिप की एक सभा में शामिल हुए थे। हाल ही में मारे गए उसके एक कार्यकर्ता की शोक सभा के नाम
पर इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। इस सभा में मुसलमानों के खिलाफ जवाबी हमले का आह्वïन करने वालों में कठेरिया भी था। उसने कहा था: ”हमें अपनी ताकत बढ़ानी होगी। हमें लड़ना पड़ेगा। अगर हम लड़ना शुरू नहीं करेंगे, तो आज हमने एक अरुण को खोया है, कल किसी और को खो देंगे। किसी और खोने से पहले ही हमें ऐसी ताकत दिखानी पड़ेगी कि खुद ये हत्यारे ही नहीं रहें।” वह इसी सुर का कायम रखते हैं और दूसरी कई आग लगाऊ टिप्पणियां भी करते हैं। इसी सभा में भाजपा के एक और सांसद ने चुनौती के स्वर में ऐलान किया- ”अगर तुम हिंदुओं की परीक्षा लेना चाहते हो, तो एक तारीख तय कर लो और मुसलमानों से निपट लो।” भाजपा के एक और विधायक ने ऐलान किया- ”2017 में चुनाव आ रहे हैं, अपनी ताकत दिखाना शुरू कर दो।”
याद रहे कि 2013 के सितंबर में मुजफ्फरनगर में भयावह सांप्रदायिक हिंसा के फूटने से पहले हुई महापंचायत में भी ऐसे ही उकसावापूर्ण भाषण दिए गए थे। मोदी सरकार के एक मंत्री का इस तरह से सांप्रदायिक हिंसा भड़काना एक ऐसी चीज है जिसे किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता है। इतना ही नहीं, कठेरिया के सांप्रदायिक हिंसा भड़काने को एक विचलन मानना भी सही नहीं होगा। कुछ भोले लोग अब भी यही समझते हैं कि यह सब बंद हो जाएगा, बस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हस्तक्षेप करने तथा अपने मंत्रियों की लगाम कसने की देर है। लेकिन सच्चाई इससे उल्टी ही है। मोदी के मंत्रिमंडल में ऐसे मंत्रियों की भरमार है जो हिंदुत्व तथा आरएसएस से अपने रिश्तों से प्रेरित हैं और इसलिए, न सिर्फ सांप्रदायिक बोली बोलते हैं बल्कि उस पर अमल भी करते हैं। संजीव बलियान को जब उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में लिया था, प्रधानमंत्री को बखूबी पता था कि वह किसे मंत्रिमंडल में शामिल कर रहे थे। बलियान, मुजफ्फरनगर कांड के अभियुक्तों में से एक है। मंत्रिमंडल में गिरिराज सिंह तथा निरंजन ज्योति जैसे दूसरे लोग भी शामिल हैं, जो अपनी सांप्रदायिक साख तथा सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने के झुकाव के बावजूद केंद्रीय मंत्रिमंडल में रखे गए हैं।
जहां तक कठेरिया का सवाल है, वह पहले भी गलत कारणों से बराबर चर्चा में रहे हैं। उन पर एमए की फर्जी मार्क शीट तैयार करने और अपने शैक्षणिक रिकार्ड में हेराफेरी करने के आरोप लगे हैं। 2011 में एक मजिस्ट्रेटी अदालत ने इन आरोपों में उन्हें दोषी भी ठहरा दिया था, जिसे आगे चलकर 2014 में एक सत्र न्यायालय ने निरस्त कर दिया। श्रीमती ईरानी तथा कठेरिया जैसे लोगों को मानव संसाधन विकास मंत्रालय में कोई उनकी शैक्षणिक योग्यता के लिए नहीं बल्कि शिक्षा में हिंदुत्ववादी एजेंडा को लागू कराने के उद्देश्य से ही बैठाया गया है।
खुद केंद्रीय मंत्रिमंडल से ही, देश के संविधान को कमजोर करने की और कानून की परिभाषा में ही फेरबदल करने की कोशिशें की जा रही हैं। इसी तरह अब अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा भड़काने को ”राष्ट्रवाद” तथा भारत माता की भक्ति के आसान पर बैठाया जा रहा है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को ही ”राष्ट्रविरोधी” तथा राजद्रोहात्मक बना दिया गया है। नरेंद्र मोदी के राज में हमने देखा है कि किस तरह राजनाथ सिंह तथा स्मृति ईरानी समेत केंद्रीय मंत्रिगण, दलित तथा वामपंथी छात्र कार्यकर्ताओं को ”राष्ट्रविरोधी” करार देते रहे हैं, जबकि हिंदुत्ववादी ताकतों से असहमति जताने वालों तथा उनका विरोध करने वालों के खिलाफ गुंडागर्दी व हिंसा का सहारा लेने वाले तत्वों को बचाने में लगे रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की सरकार का यह कर्तव्य बनता है कि आगरा में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के लिए कठेरिया तथा दूसरों के खिलाफ मुकद्दमा चलाए। उसे मुजफ्फरनगर में हिंसा भड़कने की नौबत आने तक हुई प्रशासनिक गलतियों से सीखना चाहिए। जहां तक केंद्र सरकार का सवाल है, अगर संविधान तथा देश के कानून का न्यूनतम पालन भी होना है, तो संबंधित मंत्री के हटाए जाने की संसद में उठाई गई मांग को स्वीकार किया जाना चाहिए।