देश को आजाद हुए 69 वर्ष होने को आए हैं, लेकिन हमारी सरकारें आज भी किसानों द्वारा उत्पादित अनाज के भंडारण के मामले में कितनी सजग हैं, इसका अंदाजा यहां हर वर्ष खुले आसमान के नीचे सड़ रहे हजारों- लाखों टन अनाज को देख कर लगाया जा सकता है। प्रस्तुत है इस संबंध में विभिन्न छायाकारों द्वारा खींचे गए और फेसबुक पर पोस्ट किए गए कुछ चित्रः
कितनी विचित्र बात है कि देश में एक ओर भुखमरी है, कुपोषण है और किसानों की आत्महत्याओं की भरमार है तो दूसरी ओर किसानों ने कठिन परिश्रम से जो अनाज पैदा किया है, उसका सुरक्षित भंडारण तक की व्यवस्था सरकारें नहीं कर पाई हैं। निश्चित ही यह स्थिति किसी भी आजाद देश के लिए शर्म से डूब मरने के लिए काफी है।
आज यह सच्चाई किसी से भी छिपी नहीं है कि हमारे कर्णदारों की एक बड़ी जमात सड़ा हुआ अनाज शराब कंपनियों के हाथों बेच कर मोटा मुनाफा कमाने में जुटी है। यह लॉबी इतनी मजबूत है कि बदलती सरकारों पर भी इनका दबदबा कायम रहता है।
आज यह सच्चाई किसी से भी छिपी नहीं है कि हमारे कर्णदारों की एक बड़ी जमात सड़ा हुआ अनाज शराब कंपनियों के हाथों बेच कर मोटा मुनाफा कमाने में जुटी है। यह लॉबी इतनी मजबूत है कि बदलती सरकारों पर भी इनका दबदबा कायम रहता है।
खुले आसमान के नीचे वर्षा और धूप में रखा अनाज तो स्वयं ही सड़ जाता है, लेकिन यदि कहीं अनाज के लिए छत्त उपलब्ध भी है तो वहां पाइप के जरिए पानी डाल कर उसे सड़ाया जाता है।