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मेरे साथियों ने रची मुझे बदनाम करने की साजिशः शांता

शिमला। हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा सांसद शांता कुमार के खिलाफ पालमपुर के विवेकानंद ट्रस्ट को लेकर कुछ लोगों द्वारा हाईकोर्ट में दायर याचिका को अदालत ने रद्द कर दिया है। शांता कुमार ने कोर्ट के इस फैसले से राहत की सांस तो ली, लेकिन सबसे बड़ी पीड़ा यह है कि उनके खिलाफ यह साजिश उनकी पार्टी के लोगों ने रची थी। भाजपा के वरिष्ठ नेता शांता कुमार की अपनी यह पीड़ा सोशल मीडिया पर न केवल विस्तार से व्यक्त की, बल्कि यह भी संकेत दिया कि वे अपनी आत्मकथा में इन शातिर

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साथियों को भी स्थान देंगे।

    

शांता कुमार द्वारा सोशल मीडिया में जारी उक्त पोस्ट यहां हूबहू प्रकाशित की जा रही हैः

“विवेकानंद ट्रस्ट व मुझपे आठ वर्षों से हाईकोर्ट में एक केस चल रहा था। परेशानी केवल केस भुगतने की नहीं थी, जबर्दस्त मानसिक पीड़ा को भी झेला मैंने। भगवान से कई बार पूछता था कि मुझे किस बात की सजा दी जा रही है? विवेकानन्द ट्रस्ट को जनता के सहयोग से जनता की सेवा के लिए सबने बनाया, लेकिन हवन करते हुए हमारी अंगुलियां जल गईं !

इससे भी अधिक पीड़ा इस बात की थी कि यह कार्य विरोधी दल के लोगों ने नहीं किया, बल्कि अपने ही साथियों ने निजी विद्वेष और दुर्भावना से पीड़ित होकर मुझे बदनाम करने के उद्देश्य से यह साज़िश रची। कोई तथ्य नहीं थे, जो आरोप मुझ पर लगाए गए, वस्तुस्थिति इससे विपरीत थी। कहा गया कि सरकार से जमीन लेने बाद उस जगह पर कुछ हुआ ही नहीं! जबकि वर्ष 2005 से कायाकल्प और उसके बाद विवेकानंद इंस्टीच्यूट, ये दोनों संस्थान निर्बाध अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। परन्तु मुझे नीचा दिखाने के लिए या किसी बात का बदला लेने के लिए अपने ही लोगों ने मेरे ऊपर झूठा दोषारोपण किया, मैं सचमुच आहत था। मैंने कई बार सोचा कि मैंने क्या बुरा किया कि जो ये संस्थाएं खड़ी करने का प्रयास किया? जनता का सहयोग लेकर मैंने क्या पाप किया? संस्थाएं खड़ी हैं, सेवाएं प्रदान कर रही हैं, लोगों को रोज़गार मिला है। फिर मेरे प्रति द्वेष कैसा!

परन्तु मुझे प्रसन्नता है कि न्यायपालिका ने हमें न्याय ही नहीं दिया, बल्कि बहुत बढ़िया फैसला सुनाया और याचिका दायर करने वालों को बहुत बड़ी सजा दी। इससे बढ़िया फैसला नहीं हो सकता। मैं धन्यवाद करना चाहता हूं न्यायपालिका का जिन्होंने एक निष्पक्षतापूर्ण कड़ा फैसला सुनाया। मैं धन्यवाद करता हूं मेरे सहयोगियों का, हमारे वकील साथी जिन्होंने वहां पैरवी की तथा आप सभी का जिन्होंने मुझ पर विश्वास बनाए रखा।

न्यायपालिका में जनता का विश्वास इस प्रकार के निर्णयों से और भी मज़बूत होता हैं। कोर्ट ने साफ कहा कि जनहित याचिका साफ दिल और साफ दिमाग से की जानी चाहिए, जनहित याचिका करने का औचित्य समाज को सशक्त बनाना है। परन्तु, हाईकोर्ट ने लिखा कि प्रतीत होता है याचिका करने वालों का न दिल साफ था, न मन। और यह भी कहा कि मेरे प्रति दुर्भावना, निज़ी विद्वेष और चरित्रहनन की मंशा से इस कार्यवाही को अंजाम दिया गया है। ‘वाहियात दोषारोपण तथा प्रोक्सी’ जैसे कठोर शब्दों का प्रयोग करके मेरी भावनाओं को न्यायालय ने शब्द प्रदान कर दिए हैं। याचिका को शरारतपूर्ण कृत्य कहकर कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं ने उनका और न्यायालय का समय बर्बाद किया है। इससे अधिक सख्त भाषा और क्या हो सकती है!

इसलिए याचिका को खारिज करते हुए न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं को एक लाख रुपये की कॉस्ट लगाई है, जिसमें से 25000 हज़ार रुपये मुझे भी दिए हैं। आजकल अपनी आत्मकथा लिख रहा हूं। एक चैप्टर लिख रहा हूं कि देश की राजनीति की स्थिति क्या है? मैं कहता हूं कि देश की राजनीति में भयंकर अवमूल्यन हो रहा है। राजनीति की हालत यह हो गई कि दूसरी पार्टी को नीचा दिखाने के लिए दंगे करवाए जाते हैं, पर मुझे दुख इस बात का है कि राजनीति का प्रदूषण धीरे-धीरे मेरी पार्टी में भी आ रहा है। खैर, मैं पुनः न्यायालय का धन्यवाद करता हूं कि इस फैसले ने मेरे आत्मविश्वास और सेवा की भावना को अटल बनाए रखा। मेरे मन में अब कोई कटुता नहीं। न्यायालय द्वारा मुझे दिए गए 25000 रूपये मैं ट्रस्ट को दे रहा हूं । साथ ही दंड के रूप में कोर्ट द्वारा ट्रस्ट को दिए गए 25000 रुपयों को मैं याचिकाकर्ताओं की ओर से ट्रस्ट को सहयोग मान कर स्वीकार करता हूं। इसके लिए उनका भी धन्यवाद। अब मैं पूर्णरूप से निर्माणाधीन विश्रांति पर अपना ध्यान केन्द्रित करूंगा तथा प्रयास करूंगा कि विवेकानन्द अस्पताल में कार्डियोलोजी विभाग की स्थापना यथाशीघ्र हो जाए। मेरा विश्वास है कि आप सभी के सहयोग और आशीर्वाद से जन सेवा की यह यात्रा निरन्तर जारी रहेगी।”

एचएनपी सर्विस

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