कुल्लू। विख्यात प्राचीन लोकतांत्रिक गांव मलाणा में केंद्र सरकार की महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना कारगर साबित नहीं
विश्व के इस प्राचीन लोकतंत्र वाले गांव मलाणा में आज भी अपना कानून चलता है। मलाणावासी बाहरी लोगों से अधिक मेल जोल नहीं रखते हैं तथा आपसी झगड़ों का निपटारा गांव की चौपाल में ही करते हैं। कुछ समय पूर्व तक मलाणा में चरस की खेती रोजगार का मुख्य साधन थी। मलाणा की चरस को काफी उन्नत का माना जाता है तथा उसे ‘मलाणा क्रीम’ का नाम दिया जाता है। लेकिन प्रशासन की चौकसी के कारण अब स्थिति पहले वाली नहीं रह गई है।
करीब दो वर्ष पूर्व मलाणा में मनरेगा के तहत 284 जॉब कार्ड बने थे। उसके बाद प्रशासनिक अधिकारियों ने मलाणा के लोगों को मनरेगा के प्रति जागरूक करने की कोशिश की। आरंभ में वहां इस योजना के तहत एक- दो काम हुए भी, लेकिन बाद में ग्रामीण इससे विमुख ही हो गए और संबंधित विभाग की लाख कोशिशों के बावजूद इस योजना को मलाणा में आगे नहीं बढ़ा सके। हालांकि विभाग द्वारा नवंबर में फिर मनरेगा के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए शिविरों का आयोजन किया जाएगा, लेकिन सफलता की उम्मीद कम ही है।
डीआरडीए कुल्लू के उपनिदेशक डॉ. संजीव धीमान कहते हैं कि मनरेगा के तहत पिछले दो वर्षों से एक भी पैसा मलाणा में खर्च नहीं हो पाया है। वे कई बार सहयोगियों के साथ मलाणा गए और लोगों को समझाने की कोशिश की। गांववासियों की दिहाड़ी की मांग अधिक होने के कारण वहां काम करवाना काफी मुश्किल हो रहा है। उन्होंने कहा कि एक बार फिर नवंबर में जागरूकता शिविर मलाणा में लगाया जाएगा और कोशिश की जाएगी कि लोग मनरेगा का लाभ लेने आगे आएं।
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