कुल्लू जिला में प्रायः हर ग्राम्य देवता के अपने लोक गायक, लोक वादक और लोक वाद्य हैं। देवयात्रा के समय ये सब उनके साथ चलते हैं। कुछ नृत्य विशेष धुनों पर केवल देवताओं के ही होते हैं, जिसमें गूर और अन्य कारदार नाचते हैं और इसी दौरान गूर देवता से किए गए प्रश्नों के जवाब भी देते हैं। कुछ नृत्य एवं गायन प्राचीन परंपराओं की याद में होते हैं। इनमें वीर रस, श्रृंगार रस आदि सभी होते हैं। अधिकांश नृत्यों में स्त्री और पुरुष दोनों साथ नाचते व गाते हैं। कुल्लू के कुछ लोक नृत्यों का वर्णन निम्न प्रकार से हैः
तलवार नृत्यः इस नृत्य में नर्तक दल माला के रूप में हाथों में तलवारें लहराते हुए ढोल, नगाड़े की थाप और शहनाई व करनाल आदि की मधुर धुनों व लोक गायन पर आनंदमय होकर नाचते हैं। इनमें कुछ नर्तक अलग होकर नृत्य के साथ तलवार के वार- प्रतिवार का खेल भी दिखाते हैं। कुछ लोग हाथ में ढाल लेकर भी नाचते हैं और तलवार के वार को ढाल से रोकते हैं। वीर रस से भरे इस नृत्य की रफ्तार धीरे- धीरे तेज होती जाती है और रोमांच बढ़ता जाता है। नर्तक बीच- बीच में वीर रस के कुछ नारे भी लगाते रहते हैं, जिससे नृत्य और गायन में और जोश बढ़ता है।
सांगल नृत्यः सांगल नृत्य में स्त्री- पुरुष साथ नाचते हैं। यह नृत्य स्थानीय देवी देवता और वीर पुरुषों की याद में प्रदर्शित होते हैं। इसमें पुरुष और स्त्रियां आमने –सामने अलग-अलग अर्द्धावृत बनाते हैं। परंतु लोक नृत्य की प्रगति के साथ-साथ वे आपस में मिल जाते हैं। लोक नर्तक प्रश्नोत्तर के रूप में गीत गाते हुए नाचते हैं।
करथी नृत्यः कुल्लू में एक अन्य लोकप्रिय वीर नृत्य है करथी। इस नृत्य में प्रायः स्त्री- पुरुष दोनों नाचते हैं। इस नृत्य में हाथ पांव की थिरकन एक ओर और लय दूसरी ओर होती है। भड़कीले, सुंदर वस्त्र एवं आभूषण में लोग गांव के खुले मैदान में आकर चांदनी रात में लोकगीत गाते हुए नाचते हैं। लोक नर्तक एक दूसरे का हाथ थाम कर एक वृत्त बनाते हैं और धीरे- धीरे संगीत की धुन पर नाच आरंभ होता है। शीघ्र ही नृत्य में गति आने लगती है और तब यह नृत्य चरमोत्कर्ष पर पहुंच जाता है। लोकनृत्य की गति का लोक संगीत की भावनाओं के साथ गहरा संबंध होता है। धार्मिक आयोजनों और विवाह आदि के अवसर पर लोग इस नृत्य का खूब आनंद उठाते हैं।
हुल्की नृत्यः देयू खेल के पूर्वरंग को हुलकी नृत्य भी कहा जाता है। हुलकी नृत्य में देवता अपनी प्रसन्नता प्रकट करता है। देवता के गुरमंडल के सभी लोग लंबे चोले पहनकर व सिर पर गोल कुल्लवी टोपी रख कर पंक्तिबद्ध बैठ जाते हैं और फिर विशेष वाद्यों के साथ परंपरागत ढंग से गायन व नृत्य शुरू करते हैं। इसी दौरान देवता के गूरों को खेल आती है और वे लोगों की निजी समस्याओं से संबंधित प्रश्नों के जवाब देते और समाधान सुझाते हैं।