कुल्लू। अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा के अवसर पर पशुबलि प्रथा को लेकर टकराव के आसार बन गए हैं। उच्च न्यायालय ने पशुबलि पर
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने हाल ही में धार्मिक स्थलों एवं अनुष्ठानों में पशुबलि पर पूर्ण रोक लगा दी। अदालत के इस फैसले का व्यापक रूप से स्वागत भी हुआ और विभिन्न मंदिरों की समितियों ने तो बाकायदा घोषणा भी कर दी कि उनके धार्मिक स्थलों में अब पशुबलि नहीं होगी, लेकिन कुछ देवी देवताओं के कारदारों में इस फैसले को लेकर असंतोष देखने को मिल रहा है। पहली विरोधी प्रतिक्रिया देवी- देवता कारदार संघ कुल्लू की ओर से ही आई, क्योंकि शीघ्र ही होने वाले अंतर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरा उत्सव के दौरान भी विभिन्न अनुष्ठानों में पशुबलि की परंपरा है।
देवी- देवता कारदार संघ कुल्लू और सांसद महेश्वर सिंह ने याचिका दायर कर हाईकोर्ट से आग्रह किया था कि धार्मिक स्थलों में पशुबलि पर लगी रोक को हटाया जाए, क्योंकि इससे लोगों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंच रही है। लेकिन शुक्रवार को न्यायाधीश राजीव शर्मा और न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर पर आधारित न्याय खंडपीठ ने इस आग्रह को ठुकरा दिया।
उधर, मनाली के नग्गर कैसल में आयोजित देवताओं की संसद में भी इस मुद्दे पर घंटों विचार मंथन चलता रहा और अंततः फैसला लिया गया कि देव समाज सदियों से चली आ रही पशुबलि प्रथा को नहीं छोड़ेगा। इस ऐतिहासिक देव संसद में कुल्लू, मंडी और लाहौल- स्पीति के 250 से अधिक देवी –देवताओं के हारियान, गूर और देवलु अपने-अपने देवता के प्रतीक चिन्ह लेकर पहुंचे थे। देव प्रतिनिधियों ने देवी-देवताओं से ‘पूछ’ के बाद फैसला सुनाया कि देव स्थानों में बलिप्रथा को बंद नहीं किया जाएगा और दशहरा उत्सव में भी इस परंपरा का पहले की तरह निर्वहन किया जाएगा। नग्गर कैसल में धर्म संसद का आयोजन जगती पट (देव संसद) के कारदार और भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह तथा कुल्लू कारदार संघ के प्रधान दोतराम ठाकुर के आह्वान पर किया गया था।
उत्तराखंड में भी हुए टकरावः हिमाचल प्रदेश की तरह उत्तराखंड में भी अदालत ने पशुबलि पर पूर्ण रोक लगा रखी है। वहां भी अनेक मंदिरों में धार्मिक मेलों के दौरान देव कारदारों व प्रशासन के मध्य टकराव होते रहे हैं। हालांकि वहां सैकड़ों मंदिर समितियों ने स्वयं आगे आकर अदालत के फैसले का स्वागत किया और घोषणा की कि भविष्य में पशुओं के स्थान पर नारियल या अन्य फल बलि के लिए प्रयोग किए जाएंगे, लेकिन कुछ जगह अभी भी अदालत के फैसले को लागू करने में दिक्कतें आ रही हैं। उत्तराखंड में बागेश्वर जिले के तहत मां कोट भ्रामरी मंदिर क्षेत्र में सितंबर 2012 में उस समय अजीब स्थिति पैदा हो गई जब पशुबलि पर रोक के लिए प्रशासन द्वारा आयोजित जागरूकता रैली के जवाब में पशुबलि के समर्थक देव कारदारों और ग्रामीणों ने भी ढोल नगाड़ों एवं अन्य पारम्परिक वाद्यों के साथ जोरदार प्रदर्शन किया। प्रदर्शन में प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करने वालों में बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल थीं। इनमें कुछ महिलाएं तो ऐसी हरकतें करती दिखीं मानो उनके सिर पर साक्षात् देवी सवार हो गई हो। प्रदर्शनकारियों का कहना था कि वे नंदाष्टमी के दिन मंदिर में पशुबलि करके रहेंगे। लेकिन सुखद बात यह रही कि यहां भी बाद में अधिकारियों की सूझबूझ से देव कारदारों और ग्रामीणों को पशुबलि प्रथा बंद करने के लिए मना लिया गया।