जयपुर। राजस्थान के जयपुर में सैकड़ों पत्रकार गहलोत सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं। पिछले करीब एक पखवाड़े से धरना प्रदर्शन और पोस्टर वार छिड़ी हुई है। विधानसभा सत्र के दौरान आंदोलन और तेज करने की योजना बन रही है। पत्रकारों की शिकायत है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत किन्हीं अज्ञात कारणों से उनकी जायज मांगों को नहीं सुन रहे हैं।
प्राप्त जानकारी के अनुसार गहलोत सरकार के पिछले कार्यकाल में जयपुर के नायला में लॉटरी के द्वारा 571 पत्रकारों को प्लॉट आवंटित किए गए थे। तमाम औपचारिकताएं पूरी होने पर पत्रकारों ने पैसा भी जमा करा दिया। संबंधित क्षेत्र को पत्रकार नगर का नाम भी दिया गया। लेकिन इसी बीच किसी पक्ष ने अदालत में याचिका दायर कर मामले पर रोक लगा दी। फिर भाजपा सरकार सत्ता में आई तो मामला ठंडे बस्ते में पड़ा रहा।
पत्रकारों का कहना है कि राज्य में फिर से गहलोत सरकार आने पर उन्हें उम्मीद थी कि अब उनका लंबित मामला सुलझ जाएगा, लेकिन इस सरकार ने भी उनकी कोई सुनवाई नहीं की।
नायला पत्रकार नगर के इन 571 आवंटी पत्रकारों का आंदोलन लगातार 16वें दिन भी जारी रहा। गत रविवार को पत्रकारों ने दूरभाष पर सीएम से मिलने के लिए समय मांगा, लेकिन उन्होंने समय नहीं दिया, जिससे पत्रकार और भड़क गए।
आंदोलित पत्रकारों ने रविवार को विशेष मीटिंग कर विधानसभा सत्र के दौरान आंदोलन और तेज करते हुए सड़क पर उतरने का निर्णय लिया। इस मौके पर उन्होंने ‘मुख्यमंत्री हमसे मिलो’ पोस्टगर भी जारी किया।
वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण दत्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को 571 आवंटियों के सम्बंध में कुछ अधिकारी भ्रमित करने का प्रयास कर रहे हैं, जबकि उन्हें पिंक सिटी प्रेस एनक्लेव, नायला के वास्तविक तथ्यों का ज्ञान ही नहीं है।
प्रवीण दत्ता ने कहा कि यूडीएच के प्रमुख सचिव का कहना है कि हाईकोर्ट के आदेश के अनुसार सिर्फ अधिस्वीकृत पत्रकारों को ही प्लॉट दिए जा सकते हैं, जबकि वास्तव में आदेश में ऐसा कुछ नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि यही मामला किसी धनपति को जमीन देने का होता तो हाईकोर्ट और सुप्रीमकोर्ट के फैसले को भी दरकिनार कर दिया जाता।
प्रवीण दत्ता ने कहा कि यह कैसी सरकार है जो दस साल में भी हाईकोर्ट के आदेश पर एजी और एएजी की राय नहीं ले सकी। सरकारें आरक्षण के मुद्दे पर बड़े बड़े वकील खड़े कर सकती है, लेकिन एक सामान्य आदेश की सही व्याख्या भी नहीं कर सकी है।
इस पर अन्य आवंटी पत्रकारों का कहना था कि यूडीएच के प्रमुख सचिव, जो कि राज्य स्तरीय पत्रकार आवास समिति के अध्यक्ष भी हैं, वे भूल रहे हैं कि 1 अप्रैल, 2011 से 14 मार्च, 2012 तक वे डीआईपीआर में कमिश्नर रहे थे। उन्होंने ही तो पिंकसिटी प्रेस एनक्लेव, नायला के लिए नियम व पात्रताएं निर्धारित की थीं। ऐसे में 571 के चयन पर सवाल उठाना सरासर गलत है। उन्होंने कहा कि नगरीय विकास विभाग के उस समय जारी आदेशों में राजस्थान अधिस्वीकरण नियम 1995 को ध्यान में रखते हुए नायला योजना की पात्रता में पांच वर्षीय सक्रिय पत्रकारिता के अनुभव को प्रमुख पात्रता तय किया गया था, जिसके आधार पर पूरे राजस्थान में पत्रकारों को प्लॉट आवंटित किए गए हैं। न्यायालय के आदेश में भी नियम 1995 की पालना पर जोर दिया गया है, नाकि अधिस्वीकरण प्रमाण पत्र मांगने की बात कही है।
आवंटी पत्रकारों ने अखबारों के जरिये अधिकारियों की पोल खोलो अभियान छेड़ने पर भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को इस मामले में दखल देकर नगरीय विकास विभाग के 20 अक्तूबर, 2010, 4 जनवरी, 2011 और 28 फरवरी, 2013 के नीतिगत आदेशों की पालना करानी चाहिए, जिससे कि 571 आवंटियों के साथ न्याय हो सके। मीटिंग में सभी ने एक स्वर में तय किया कि मुख्यामंत्री से मिलने के लिए जत्थों का सीएमआर जाने का क्रम अनवरत जारी रहेगा और जल्दी ही सभी जत्थों का मुख्यमंत्री निवास तक एक साथ पैदल मार्च भी होगा।