मंडी। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि हिंदुओं के धार्मिक ग्रंथ रामायण पर आधारित रामलीला का मंचन मुस्लिम बहुत देश इंडोनेशिया में भी देखने को
बाली में लोग स्थानीय लिवास में रहते हैं, पर उनके नाम संस्कृत शब्दों पर आधारित होते हैं, जैसे- कर्ण, इरावती आदि। बहुत सी हिन्दू स्त्रियां माथे पर तिलक भी लगाती हैं। वहां अनेक हिन्दू मंदिर हैं। इसके अतिरिक्त प्रत्येक घर या होटल में किसी स्थान पर छोटा सा मंदिर स्थापित किया हुआ देखने को िमल जाता है। ये लोग अपनी विधि से रोज पूजा अर्चना करते हैं।
बाली अपने सुंदर समुद्र तटों के कारण एक अत्यंत लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो सारा साल विश्व भर से आए सैलानियों से भरा रहता है। मैं वर्ष 2009 में वहां गया था और एक सप्ताह वहां रहा। आपको यह जान कर हैरानी होगी कि वहां के एक मंदिर उलूवाटू में हर रोज शाम को रामलीला का मंचन होता है। मंदिर के एक भाग में एक काफी बड़ा ओपन एयर थियेटर बनाया गया है, जिसमें 50-60 कलाकार स्थानीय भाषा में रामलीला प्रस्तुत करते हैं। भाषा भिन्न होने के कारण संवाद तो समझ नहीं आते, पर कहानी का अंदाजा लग जाता है। इस रामलीला को देखने के लिए टिकट खरीदना पड़ता है, जो काफी महंगा है। फिर भी जो शो मैंने देखा, उसमे कोई 400 दर्शक तो अवश्य होंगे।
बाली की रामलीला में हमारे यहाँ की जाने वाली रामलीला से कुछ भिन्नताएं हैं। हमारे यहां सीता, राम और लक्ष्मण को साधु वेश में दिखाया जाता है, पर वहां ऐसा नहीं है। वहां ये पात्र पूरे राजसी वेश में होते हैं। हनुमान, रावण, जटायु आदि का शृंगार भी हमारे यहाँ से भिन्न होता है।
शो समाप्त होने पर सभी मुख्य कलाकार मंच पर आ जाते हैं और कुछ दर्शक भी उनमें मिल जाते हैं। उस दिन के शो के दर्शकों में केवल मैं ही भारतीय और हिन्दू भी था। मैं भी मंच पर कलाकारों के बीच चला गया। जब मैंने उनको बताया कि मैं श्री राम सीता जी के देश भारत से आया और हिन्दू हूं, तो वे बहुत प्रसन्न हुए और कई अभिनेता पात्रों ने मेरे साथ चित्र खिचवाएं।
(डा. चिरंजीत परमार के ब्लॉग से साभार। डा. चिरंजीत परमार बागवानी विशेषज्ञ के रूप में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित हैं।)