नई दिल्ली। ग्लोबल हंगर इंडेक्स की इस वर्ष की रिपोर्ट में भारत 94 पायदान पर आया है। इसमें सबसे शर्मनाक बात यह है कि विभिन्न गरीब देशों- नेपाल (73), म्यांमार (69), श्रीलंका (64), पाकिस्तान (88), इंडोनेशिया (70) और बांग्लादेश (75) से भी हम बहुत पीछे हैं। पिछले साल 2019 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 102वें स्थान पर आया था, लेकिन इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि भारत की स्थिति सुधरी है, क्योंकि पिछली बार इस सूची में 117 देश शामिल थे, जबकि इस बार मात्र 107 देश शामिल हुए हैं।
मोदी सरकार में हमारी स्थिति लगातार बद से बदतर की तरफ बढ़ रही है। वर्ष 2014 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रैंकिंग में भारत 55वें पायदान पर था, लेकिन 2014 में केंद्र में प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में सरकार बनने के बाद भारत की रैंकिंग में लगातार गिरावट दर्ज की गई। ग्लोबल हंगर इंडेक्स के अनुसार 2015 में भारत 55वें स्थान से फिसलकर 80वें पायदान पर पहुंच गया, वहीं 2016 में 97वें और 2017 में 100वें स्थान पर पहुंच गया। 2018 में 103 वें स्थान पर था और 2019 में 102 वें नम्बर आया। इस साल सूची में कम देश होने के कारण वह 94 स्थान पर है। हर साल अक्तूबर माह में यह रिपोर्ट जारी की जाती है। 2020 में इस रिपोर्ट का 15 वां संस्करण आया है।
अब आप यह समझिए कि यह सूची क्या है ?
ग्लोबल हंगर इंडेक्स में दुनिया के तमाम देशों में खानपान की स्थिति का विस्तृत ब्योरा होता है। मसलन, लोगों को किस तरह का खाद्य पदार्थ मिल रहा है, उसकी गुणवत्ता और मात्रा कितनी है और उसमें कमियां क्या हैं। इस इंडेक्स में दुनिया के विकसित देश शामिल नहीं होते हैं। वर्ष 2006 में इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट (आईएफपीआरआई) नाम की जर्मन संस्था ने पहली बार ग्लोबल हंगर इंडेक्स यानी वैश्विक भूख सूचकांक जारी किया था।
‘ग्लोबल इंडेक्स स्कोर’ ज़्यादा होने का मतलब है उस देश में भूख की समस्या अधिक है। उसी तरह किसी देश का स्कोर अगर कम होता है तो उसका मतलब है कि वहां स्थिति बेहतर है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स को नापने के चार मुख्य पैमाने हैं – कुपोषण, शिशुओं में भयंकर कुपोषण, बच्चों के विकास में रुकावट और बाल मृत्यु दर। मोदी सरकार का ‘न्यू इंडिया’ इन चारों मोर्चों पर फेल साबित हुआ है।
सरकार दावा करती रही है कि हम अब विकासशील से विकसित देशों की सूची में आने वाले हैं, हम विश्व की सबसे बड़ी पांचवीं- छठी अर्थव्यवस्था हैं। लेकिन सच यह है कि हम भारत में सभी नागरिकों की भूख मिटा नहीं पाए हैं।
अदम गोंडवी ने लिखा है…
‘उनका दावा, मुफ़लिसी का मोर्चा सर हो गया
पर हक़ीक़त ये है कि मौसम और बदतर हो गया’
(Girish Malviya की वाल से साभार)