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भूख से सैकड़ों चाय मजदूरों की मौत, कहां है सरकार?

कोलकाता। पश्चिम बंगाल के चाय बागानों में भुखमरी से मजदूरों की मौतों का सिलसिला

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थमने का नाम नहीं ले रहा है। मजदूरों की बस्तियों में कुपोषण और भुखमरी का विचलित कर देने वाला नजारा है। लोग वृक्षों के पत्ते और जड़ें खा कर जिंदा रहने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन अभी तक ना तो टी कार्पोरेटर और न ही सरकार ने इस दिशा में कोई कदम उठाया है। अभी तक 350 के करीब चाय मजदूरों की भूख या इससे संबंधित बीमारियों से मौतें हो चुकी हैं।

अलीपुरदुआर जिले के बीरपाड़ा- मदारीहाट बल्क के दिमदिमा टी एस्टेट में पिछले कुछ ही महीनों में भुखमरी से 15 लोगों की जान जा चुकी है। इनमें से 11 लोगों की मौत अकेले गत सितंबर माह में ही हुई है। इस टी एस्टेट की मिल्कीयत डंकन्स के पास है, जो चाय उद्योग में सबसे बड़े कार्पोरेटरों में से एक है। यह टी गार्डन भी इसी कंपनी के 16 अन्य चाय बागानों की तरह बंद होने की कगार पर है।

जलपाईगुड़ी में मालावार ब्लॉक के बगराकोट में स्थिति और भी भयावह है। बताते हैं कि इस टी गार्डन में पिछले तीन साल में भुखमरी से 25 मौतें हो चुकी हैं। यह टी गार्डन भी डंकन्स का ही है और औपचारिक रूप से खुला हुआ है। बहरहाल टी गार्डन में कोई काम नहीं है। न वेतन है, न नियमित राशन, ना खाना है, न बिजली और न ही बीमारियों का कोई इलाज। कुछ मजदूरों को अधमरी हालत में अस्पतालों में भर्ती कराया गया, जिनमें से ज्यादातर कभी वापस नहीं आए।

राज्य में सैकड़ों चाय मजदूर गंभीर संकट से गुजर रहे हैं। भुखमरी की रिपोर्टें आ रही हैं। भारी कुपोषण है और उससे संबंधित बीमारियां। तृणमूल कांग्रेस सरकार की अनदेखी के साढ़े चार साल बाद यहां हालात ऐसे बिंदु पर पहुंच गए हैं, जिसमें मालिकान लूटपाट करते हैं और भाग जाते हैं।

राज्य में सिर्फ निजी चाय बागानों में ही नहीं बल्कि उन बागानों में भी भुखमरी से मौतें हो रही हैं, जिनका सरकार ने अधिग्रहण कर लिया था। चाय उद्योग में कार्यरत ट्रेड यूनियनों द्वारा की गई एक गणना के अनुसार इस अवधि में भुखमरी या इससे संबंधित बीमारियों के चलते लगभग 350 मजदूरों की मौत हो चुकी है। इनमें से 100 मौतें सिर्फ डंकन्स के चाय बागानों में हुई हैं।

यहां मजदूरों और उनके परिवारों को अभूतपूर्व ढंग से ठगा गया है। राशन या तो बंद कर दिया गया है या फिर इतना कम कि गाहे- बगाहे ही मुहैया कराया जा रहा है। इन क्षेत्रों में अकाल के से हालात बन गए हैं। मजदूर घटिया दर्जें का चावल, जंगली पेड़ पौधों के पत्ते और जड़ें खाने को मजबूर हैं। स्थानीय प्रशासन उन्हें वैकल्पिक रोजगार मुहैया कराने में विफल रहा है।

चाय बागान मजदूर वाममोर्चा सरकार के दिनों और आज के हालात में बहुत फर्क महसूस कर रहे हैं। वर्ष 2003 से 2007 में औद्योगिक मंदी के समय देश भर में 135 चाय बागान बंद हो गए थे। इसमें 35 अकेले पश्चिम बंगाल में ही बंद हुए थे। लेकिन तत्कालीन वाममोर्चा सरकार मजदूरों के साथ दृढ़ता से खड़ी रही। सरकार ने उन्हें बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराईं, वित्तीय रूप से मदद की, उन्हें न्यूनतम मूल्य में खाना, तेल, नमक आदि मुहैया कराए। इसके अतिरिक्त स्थानीय पंचायतों ने विभिन्न योजनाओं के तहत उन्हें काम दिया था। बाद में राज्य सरकार के निरंतर प्रयासों से 31 बंद बागानों को खोला गया था।

इसके विपरीत तृणमूल कांग्रेस सरकार तो उन चार बागानों को खुलवाने में भी असफल रही है जिनका उसने अधिग्रहण किया था। मजदूरों को मनरेगा के तहत भी रोजगार नहीं दिया गया। यदि कहीं दिया भी है तो वहां मजदूरी का भुगतान नहीं हो रहा है।

एच. आनंद शर्मा

H. Anand Sharma is active in journalism since 1988. During this period he worked in AIR Shimla, daily Punjab Kesari, Dainik Divya Himachal, daily Amar Ujala and a fortnightly magazine Janpaksh mail in various positions in field and desk. Since September 2011, he is operating himnewspost.com a news portal from Shimla (HP).

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