किसी ने कहा मैं कामरेड हूं। मोदी जी ने जिस दिन नोटबंदी का ऐलान किया था, उस दिन मैंने कहा था, ‘बढ़िया फैसला है।’ उस दिन मुझे भाजपा का भक्त कहा गया। अव्यवस्था के कारण नोटबंदी की मार से त्रस्त लोगों के पक्ष में कुछ कहा तो मुझे कांग्रेसी करार दे दिया गया। मेरे लिखे को अनजाने में सुना तो एक मित्र ने कहा कि आपकी गजलों में नए और अद्भुत प्रयोग हैं। ग़ज़ल के गुरु घंटालों की नज़र पडी तो उन्होंने मेरे लिखे को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि- ‘पहले ग़ज़ल का अनुशासन होना ज़रूरी है, कंटेंट अनुशासन के बगैर किस काम का?’
एक दिन मैं जनवादी कवि के साथ दिखा तो प्रगतिवादी नाराज़ हो गए, दूसरे दिन प्रगतिवादी के साथ दिखा तो जनवादियों ने भौंहें तरेर लीं | दिल्ली से लालित्य ललित और प्रेम जन्मेजय ने प्रोत्साहित किया कि तुम्हारी रचनाओं में तीखा व्यंग्य है, हमारे साथ जुड़ो। ये सब सुनकर हिमाचल के मेरे साथी लेखकों ने कहा कि- ‘एक दम मौक़ा परस्त है, कहीं भी लुढ़क जाता है, एक लाइन बताए कोई ज़रा व्यंग्य की, जो इसने लिखी हो।’
बाहर से आए एक कवि मित्र ने शिमला में जब मुझसे मिलना चाहा तो उसे मेरे कुछ दूसरे लेखक साथियों ने मेरे बारे में हिदायत दी कि मैं एक हल्का फुल्का लेखक हूं, मुझसे न मिला जाए तो ही बेहतर। बस ऐसे ही लम्बी नाक वालों के साथ दिखा तो छोटी नाक वाले नाराज़, छोटी नाक वालों के साथ रहा तो लम्बी नाक वालों ने अपनी नाक दूसरी तरफ घुमा दी। मेरे एक प्रशंसक पत्रकार मित्र ने एक दिन मुझे ‘अपने समय का दबंग पत्रकार’ लिख दिया तो एक सक्रिय धड़ा खुसर- फुसर करने लगा कि दबंग होता तो सरकारी नौकरी करता?
अपने दफ्तर में अपने हक़ के लिए बॉस से बहस होने लगी तो मेरे कर्मचारी मित्र ने बॉस के कान में कहा कि- ‘सर ये पत्रकार रहा है, इससे बच के रहो, हमारे खिलाफ ही कोइ खबर छाप देगा तो इशू बन जाएगा।’ घर पर पहुंचा तो पत्नी बोली- ‘सारा दिन दफ्तर में रहते हो, घर पर राशन कौन भरेगा? तुम घर के मुखिया कहलाने लायक भी नहीं हो। बच्चों को स्कूल छोड़ने कौन जाएगा? जो घर को लाइब्रेरी बना रखा है, इसमें किसी दिन आग लगा दूंगी अगर मुझे गुस्सा आ गया तो…।’ अब मैं कन्फ्यूज़ हूं कि क्या मैं हूं? अगर हूं तो मैं हूं कौन?