शिमला। हिमाचल प्रदेश में निजी शिक्षण संस्थानों की लूट से परेशान लोगों के लिए यह कुछ राहत देने वाली खबर हो सकती है। हिमाचल हाईकोर्ट ने निजी स्कूलों समेत प्रदेश भर के निजी कॉलेजों, कोचिंग सेंटरों, किसी भी नाम से चलने वाले एक्सटेंशन सेंटरों और विश्वविद्यालयों की जांच के आदेश दिए हैं। अदालत ने टिप्पणी की है कि यहां निजी शिक्षण संस्थान नाजायज तरीके से फीस वसूल कर अपने संसाधन बढ़ा रहे हैं।
अदालत का यह आदेश प्रदेश सरकार के मुंह पर भी एक तमाचा है। हाल ही में राजधानी शिमला में निजी स्कूलों द्वारा मनमाने ढंग से बढ़ाई गई फीस के विरोध में लोगों ने धरना प्रदर्शन किए, लेकिन सरकार ने इन संस्थानों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। कोर्ट ने सरकार को यह चेतावनी भी है कि यदि इन आदेशों की अवहेलना हुई तो अवमानना का मामला चलाया जाएगा।
हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को आदेश दिए कि वे एक कमेटी का गठन करे जो तीन महीने के भीतर जांच पूरी करे। यह कमेटी मूलभूत सुविधाओं, मान्यता और मनमाने ढंग से वसूली जा रही फीस की जांच करेगी। यह भी जांच की जाएगी कि क्या निजी संस्थानों के पास पर्याप्त आधारभूत ढांचा, प्रशिक्षित स्टाफ, अध्यापक- अभिभावक संघ हैं? क्या कोई विवि या अन्य संस्थान ओपन डिस्टेंस लर्निंग के माध्यम से कोई प्रोग्राम या कोर्स तो नहीं करवा रहे, जो यूजीसी के नियमों के विपरीत हो। क्या कोई गुमराह करने वाले विज्ञापन तो ऐसी संस्थाओं की ओर से जारी नहीं किए जा रहे?
न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने अपने आदेश में राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि निजी शिक्षण संस्थान बिल्डिंग फंड, आधारभूत ढांचा फंड, विकास फंड आदि से जुड़ी फीस वसूल न करे। बिजनेस इंस्टीच्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडी की याचिकाओं का निपटारा करते हुए कोर्ट ने प्रदेश में धड़ल्ले से चल रही निजी शिक्षण संस्थानों की मनमानी पर आपत्ति प्रकट करते हुए कहा कि निजी शिक्षण संस्थान नाजायज तरीके से फीस वसूल कर शिक्षा को व्यापार बना रहे हैं। उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती।