एक गंभीर विषय को लेकर डिप्रेस्ड हूं। सिरमौर में लड़कियों की तस्करी से जुड़े भ्रामक समाचार के बाद… जिस प्रकार राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर बवाल मचा हुआ है, उस पर बार-बार अपना पक्ष रखने का मन कर रहा है। एक नहीं दो नहीं कम से कम 10 बार इस संवेदनशील विषय लिखने का असफल प्रयास किया। एक प्रयास आज फिर से कर रहा हूं।
सर्वप्रथम मैं इस संवेदनशील मामले पर मीडिया की भूमिका की निंदा करता हूं। समाचार पत्रों ने जिस प्रकार से अपनी खबर बेचने के लिए सिरमौर की बेटियों का सहारा लिया, वह पूर्णतः अनैतिक है। समाचार अथवा सब्जेक्ट कितना भी गंभीर और महत्वपूर्ण क्यों न हो, उसके मूल में छिपे तथ्यों को शालीनता और सामाजिक दायरे में रहकर प्रकट किया जाना चाहिए।
यह पहली बार नहीं हुआ है। पहले भी इस प्रकार के आरोप हम सिरमौरियों पर लगते रहे हैं। पर इन आरोपों को कभी साबित नहीं किया जा सका है। पर विडंबना यह है कि इसे मजबूती के साथ कभी झुठलाया भी नहीं गया। इसलिए इस प्रकार के भ्रम बार-बार उत्पन्न होते हैं। लेकिन आज जब हम सिरमौरियों के सामने यह प्रश्न…यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा हुआ है, हमें गंभीरता और स्पष्टता से विचार रखना चाहिए।
इस संवेदनशील विषय पर सिरमौर के कई बुद्धिजीवी लोगों से चर्चा हुई। धन लेकर विवाह करने और लड़कियों की तस्करी के आरोप को किसी ने सही नहीं माना। लेकिन अफसोस है कोई भी स्पष्टता से इसे गलत भी नहीं ठहरा पाया। सभी कहीं न कहीं भ्रम में दिखाई दिए। इस मुद्दे पर लोगों का जो दृष्टिकोरण सामने आया। आपसे शेयर कर रहा हूं-
प्रथम दृष्टिकोण- सिरमौर के गिरीपार क्षेत्र की संस्कृति हरियाणा और पंजाब से भिन्न है। फिर क्या वजह है कि हम माता- पिता अपनी बेटियों का विवाह इन क्षेत्रों में करते हैं, जबकि माना यह जाता है कि विवाह अपने समुदाय, समाज और संस्कृति के अनुरूप होना चाहिए।
दूसरा- जिस गिरीपार क्षेत्र को हम जनजातीय क्षेत्र घोषित करवाने के लिए दिन-रात एक कर रहे हैं, वहां के हम माता-पिता अपनी बेटियों का विवाह, पहाड़ों से हटकर मैदानी संस्कृति में क्यों करना पसंद करते हैं?
तीसरा– यह बात गौर करने और विश्लेषण करने लायक है। यदि हम अपनी एक 18-20 साल की बेटी का विवाह किसी 20-25 वर्ष के युवक के साथ करते हैं तो उम्र के लिहाज से यह अच्छा मैच माना जाता है। पर यदि हम इस उम्र की बेटियों का विवाह। 40 से 50 वर्ष के अधेड़ व्यक्ति के साथ करते हैं, इसमें हमारी क्या मजबूरी हो सकती है…?
चौथा– यह चतुर्थ दृष्टिकोण सबसे ज्यादा गंभीर है। यह कि जिन पुरूषों के साथ हमारी बेटियों का विवाह संपन्न हुआ है, क्या उनमें से कुछ की संख्या रंडवा या कहें पहले से शादीशुदा वाली तो नहीं थी?
पांचवा- यह कि जिन पुरूषों के साथ हम बेटियों का विवाह करते हैं, उनमें से कुछ की संख्या अपंगता की तो नहीं थी?
दरअसल, इस विषय पर हम मां-बाप ही सही दृष्टिकोण और स्पष्टीकरण प्रस्तुत कर सकते हैं। पर यह विषय सामाजिक सरोकार से भी जुड़ा हुआ है। इसलिए हम इस मामले पर राजनीतिक, सामाजिक और मीडिया के हस्ताक्षेप को नकार भी नहीं सकते हैं। पता नहीं आप मेरे इस लेख से कितने सहमत हैं ?