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घोषणा तो हो गई, पर बंदर मारेगा कौन? - Himnewspost

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घोषणा तो हो गई, पर बंदर मारेगा कौन?

शिमला। हिमाचल प्रदेश में उत्पाती बंदरों को मारने की अनुमति तो मिल गई और मारने पर प्रतिबंदर 300 रुपये का इनाम भी घोषित हो गया, लेकिन मूल प्रश्न वहीं खड़ा है कि यह काम करेगा कौन? भारत सरकार ने शिमला शहर सहित 38 तहसीलों में बंदरों को मारने के लिए गत मार्च माह में ही अधिसूचना जारी कर दी थी, लेकिन अभी तक परिणाम शून्य ही रहा है।  

हिमाचल प्रदेश में बंदरों के बढ़ते प्रकोप के कारण क्या शहरी क्या ग्रामीण इलाके सभी बहुत परेशान हैं। यहां बंदरों के कारण लाखों हेक्टेयर कृषि भूमि बंजर पड़ गई है। बड़ी संख्या में किसान खेती छोड़कर रोजगार के लिए शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। बंदरों से छुटकारा दिलाने की मांग को लेकर हिमाचल किसान सभा सहित विभिन्न किसान एवं बागवान संगठन पिछले करीब एक दशक से आंदोलित हैं। विधानसभा सत्र के दौरान हर बार प्रदेश भर से हजारों किसान घेराव करने शिमला पहुंचते हैं।

भारत सरकार ने बंदरों को पीड़क और वर्मिन घोषित कर उनसे छुटकारा पाने का रास्ता तो दिया है, लेकिन इसे लेकर प्रदेश सरकार की अपने स्तर पर कोई तैयारी नहीं है। बंदरों को मारने की प्रक्रिया में सरकार खुद कोई जिम्मेदारी नहीं ले रही। उलटा पेचीदा गाइडलाइन बनाकर बंदर मारने वालों के हाथ बांध दिए हैं।

प्रदेश सरकार ने बंदरों को मारने के लिए जो गाइडलाइन तैयार की है उसके अनुसार बूढ़े, कमजोर, अपंग या बच्चे वाली मादा को नहीं मारा जा सकेगा। बंदर मारने के बाद संबंधित क्षेत्र के वन रक्षक, रेंज आफिसर या डीएफओ को इसकी सूचना देनी होगी और फिर उनके सामने ही बंदर को दफनाने का काम भी उसे करना होगा। बंदर मारने या उसके बाद यदि कोई कानूनी विवाद हुआ तो उसकी जिम्मेदारी बंदर मारने वाले की ही होगी। सरकार उसमें पार्टी नहीं बनेगी। इन सारे जोखिमों के बाद बंदर मारने वाले को प्रतिबंदर 300 रुपये प्रोत्साहन के रुपये दिए जाएंगे। कोई है जो आगे आएगा?

ग्रामीण क्षेत्रों में तो हो सकता है किसान अपनी फसलें बचाने के लिए बंदरों को मारने आगे आ जाएं, लेकिन शहरी क्षेत्रों में इसे लेकर संदेह ही है। फिलहाल तो इनाम के लालच में कहीं भी कोई शिकारी आगे नहीं आया है।

प्रदेश में इस समय करीब सवा तीन लाख बंदर हैं, जो गांवों से लेकर शहरों तक फैले हुए हैं और हर वर्ष करोड़ों रुपये की संपदा का नुकसान करते हैं। बंदरों की संख्या को नियत्रित करने के लिए पूर्व में सरकार ने करोड़ों रुपये फूंक कर नसबंदी अभियान भी चलाया था, जो विफल साबित हुआ।

एचएनपी सर्विस

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