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Categories: राजनीति

चाण-बाणों के चक्कर में फंसे हरीश!

देहरादूनहाल ही का घटनाक्रम हरीश रावत के लिए सबक है। विजय बहुगुणा और हरक सिंह के इस कदम से बहुत आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं

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, क्योंकि इनके राजनीतिक इतिहास और उपलब्धियोंको देखकर यही उम्मीद की जा सकती थी, लेकिन एक समय बहुगुणा की तीखी आलोचना करने से न थकने वाली भाजपा ने जो किया, वह जरूर हैरत करने वाला है।

हरीश रावत को सियासत का मंझा खिलाड़ी माना जाता है। वे अच्छे पॉलिटिकल मैनेजर हैं, पर लोग हैरत में हैं कि इस बार एक ‘डॉक्टर’ ही क्यों ‘बीमार’ हो गया? आखिर हरीश रावत से कहां चूक हो गई?

दरअसल, इसकी वजह हरीश रावत से अधिक उनके सिपहसालार हैं। इस घटनाक्रम के लिए बहुत हद तक उनके वे चाण-बाण जिम्मेदार हैं, जिनकी जुंडली प्रातःकाल मुख्यमंत्री की आंख खुलने से लेकर देर रात आंख बन्द होने तक हरीश को घेरे रहते हैं। इनमें कुछ लोग तो बहुत दम्भी-अहंकारी हैं। वे खुद को मुख्यमंत्री समझ किसी कार्यकर्ता या नेता के हरीश रावत के नजदीक फटकने पर नाक-भौं सिकोड़ते हैं। वे कई बार तो सीएम के सरकारी सुरक्षा अधिकारी तक लगते हैं। बताया जाता है कि हरीश रावत के इन कर्ता-धर्ताओं के अप्रिय व्यवहार की वजह से पार्टी के कुछ लोग बहुत ही नाराज थे। इनमें कुछ आला नेता भी शामिल हैं।

लेखक डॉ.वीरेन्द्र बर्त्वाल, वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक टिप्पणीकार हैं।

एक समय हरीश रावत के गले के पट्टे को अपने हाथ में लेकर घूमने वाले ये लोग तब जतलाते थे कि वे सीएम की सांसों में समाये हुए हैं। हरीश रावत अक्सर इनके मोबाइल फोनों का ही इस्तेमाल भी करते हैं। यानी ये एक प्रकार से पीएस या पीए की भूमिका में भी रहते हैं। अधिकारियों को भी यही लोग डील करते रहे हैं।

दरअसल, इनमें अधिकतर वे कांग्रेसी हैं, जो तिवारी के मुख्यमंत्रित्व काल से हरीश गुट के हैं। इनका दायित्व मीडिया को भी मैनेज करना रहा, लेकिन ये इस पर खरा नहीं उतर पाये। इनकी नजर में मीडिया का एक ही गुट महत्वपूर्ण रहा। ये इन्हीं गिने-चुने पत्रकारों को मैनेज किये हुए रहे।

रावत के इन खास लोगों ने शायद कभी इस बात की परवाह नहीं की। उनकी कुछ भूलें उनके बॉस को नुकसान पहुंचा सकती हैं। हरीश रावत ने भी शायद इन पर नजर रखने की जहमत नहीं उठाई। इनमें एकाध सिपहसालार तो ऐसे हैं जो हरीश रावत या सरकार की खामी सुनने तक नहीं तैयार थे। अच्छी बातों को सीएम तक पहुंचाना और कमियों को दबाना इनकी आदत रही।

अब बात भाजपा की। कांग्रेस की कई खामियों से खार खाई जनता अगले चुनाव में भाजपा की तरफ झुक सकती थी, लेकिन भाजपा ने विजय बहुगुणा से हाथ मिलाकर शायद अपना भाग्य झुका दिया। बहुगुणा यहां के ऐसे मुख्यमंत्री रहे, जिन पर विफलता का दाग लगा है। आपदा में उनकी किरकिरी हुई तो आलाकमान ने उन्हें पदच्युत कर दिया। राज्य के लिए उनका योगदान नहीं के बराबर है। ऐसे व्यक्ति से हाथ मिलाकर भाजपा ने एक प्रकार से जनता की नाराजगी से भी हाथ मिला दिया। अगर भाजपा की सरकार उत्तराखण्ड में बनी भी तो मुख्यमंत्री को लेकर ‘युद्ध’ होगा। वहां सतपाल महाराज जी पहले से ही सिंहासन पर बैठने को तैयार बैठे हैं, जबकि हरक सिंह, विजय बहुगुणा, रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ भी सीएम बनने की कतार में खड़े हो जाएंगे। बहरहाल, चर्चा यह भी है कि हरक जैसे मनमाने, सुबोध उनियाल जैसे मुंहफट, चेंपियन जैसे धौंसपट्टी और बहुगुणा जैसे अयोग्य नेता के पलायन से कॉंग्रेस में कुछ सफाई हो गई है। अब भाजपा को उन्हें झेलने के लिए तगड़ा मैनेजमेंट करना होगा।

एच. आनंद शर्मा

H. Anand Sharma is active in journalism since 1988. During this period he worked in AIR Shimla, daily Punjab Kesari, Dainik Divya Himachal, daily Amar Ujala and a fortnightly magazine Janpaksh mail in various positions in field and desk. Since September 2011, he is operating himnewspost.com a news portal from Shimla (HP).

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