नाहन। प्राचीन परंपराएं एवं रीति रिवाज जब समाज के लिए मुसीबत बनने लगे तो उनमें समय के अनुकूल बदलाव लाना आवश्यक हो जाता है। हालांकि
जिला सिरमौर की आधी आबादी सदियों पुराने खर्चीले रीति रिवाजों को त्यागने और उनमें आमूलचूल परिवर्तन करने को तैयार हो गई है। ट्रांसिगरी क्षेत्र की 125 पंचायतों में रिवाज के अनुसार विवाह समारोह 4-5 दिन चलता है, जिसमें कई बकरे काटे जाते हैं और दिल खोल कर देसी घी मेहमानों एवं बारातियों को परोसा जाता है। एक शादी में 25 बकरे एवं 55 टन देसी घी परोसने का रिकार्ड भी इसी क्षेत्र का है। परिणाम स्वरूप अधिकांश नव दंपत्ति शादी के बाद जीवन की शुरुआत भारी कर्ज से करते हैं और अकसर पूरा परिवार सारी उम्र कर्ज के बोझ तले रहता है। विवाह में मामा पक्ष को भी काफी खर्चा कर धाम देनी पड़ती है। यही नहीं यहां मृत्यु होने पर शोक मनाने और त्यौहारों आदि पर भी लोगों को मजबूरन भारी खर्चा करना पड़ता है। किसी सदस्य की मृत्यु पर शोक व्यक्त करने का तरीका भी बहुत खर्चीला होता है। मृतक के परिजनों के पास शोक व्यक्त करने के लिए साल भर लोगों का आना लगा रहता है और इस दौरान लोगों की खूब सेवा की जाती है।
क्षेत्र के कुछ जागरूक लोगों के प्रयासों से गत रविवार को वहां एक सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें बोझ बन चुके प्राचीन रीत रिवाजों में बदलाव लाने के लिए ‘विजन डाक्यूमेंट आन सोशल रिफार्म्स’ लांच किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सीपीएस विनय कुमार, विशिष्ट अतिथि हिमफैड के चेयरमैन अजय बहादुर, योजना बोर्ड की चेयरमैन सत्या परमार, पूर्व विधायक कुश परमार थे। हाटी कल्याण कर्मचारी समिति के अध्यक्ष जीएस चौहान ने मीडिया को सम्मेलन में सभी वक्ताओं ने स्वीकार किया कि क्षेत्र में पुराने खर्चीले रीति रिवाजों की उपयोगिता अब समाप्त हो गई है। इसलिए वर्तमान को ध्यान में रखते हुए इनमें व्यापक स्तर पर बदलाव लाना जरूरी है।
सर्व सम्मति से तैयार किए गए विजन डाक्यूमेंट में कहा गया है कि अब विवाह समारोह में केवल एक ही धाम दी जाए, मामा की धाम पर प्रतिबंध हो। शहरी बैंडबाजे पर भी रोक लगे, डीजे के स्थान पर भी रासा एवं नाटियों की ही प्रस्तुतियां हों और यदि कोई युगल मंदिर में शादी करना चाहे तो उसका स्वागत किया जाए। इसी प्रकार मृत्यु होने पर शोक मनाने की तरीकों पर भी परिवर्तन लाने की बात कही गई है। इसके लिए कहा गया है कि कफन चढ़ाने के बजाए मृतक के परिवार को आर्थिक मदद दी जाए और यदि एक परिवार से एक सदस्य शोक प्रकट कर दे तो पर्याप्त समझा जाए।
पूर्व विधायक कुश परमार ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि विजन डाक्यूमेंट को यदि शतप्रतिशत लागू किया जा सका तो प्रत्येक शादी का खर्चा कम से कम एक लाख रुपये कम हो सकता है। क्षेत्र की एक पंचायत में प्रति वर्ष औसतन 10 शादियां होती हैं। इस प्रकार 125 पंचायतों में एक वर्ष में 12.50 करोड़ रुपये की बचत हो सकती है।
ट्रांस गिरी क्षेत्र में हर वर्ष 11 जनवरी को भाती भोज (स्थानीय त्यौहार) मनाया जाता है। इस मौके पर हर परिवार में एक बकरा काटने की प्रथा है। यहां 125 पंचायतों में 43812 परिवार रहते हैं। इस प्रथा को रोकने के लिए भी सुझाव सम्मेलन में रखे गए। कुछ ही दिन बाद होने वाले इस त्यौहार से ही इन सुझावों को लागू करने का प्रयास किया जाएगा। यदि इस पर अमल संभव हो सका तो क्षेत्र वासियों का हर वर्ष लगभग 35 करोड़ रुपये का आर्थिक नुकसान होने से बचेगा।