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देहरादून। राज्य सरकार दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों से पलायन कर गए लोगों के खाली पड़े पुराने घरों को भी संरक्षण दे दायरे में लेने की तैयारी कर रही है। इसके लिए संस्कृति विभाग के द्वारा सर्वेक्षण कराया जा रहा है। कुमाऊं में गर्ब्याग से कुटी तक के छह गांवों के खाली पड़े 75 साल पुराने घरों की जिम्मेदारी अब सरकार लेगी। इसके अतिरिक्त जौनसार के रवाईं क्षेत्र के दो सौ साल पुराने घरों को जस का तस उठाकर दूसरी जगहों पर स्थानांतरित करने का भी निर्णय लिया गया है ताकि पर्यटक भी ऐसे घरों को निहार सकें।
उल्लेखनीय है कि सरकारी उपेक्षा के चलते उत्तराखंड के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों से रोजगार के लिए बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार राज्य में तीन हजार से अधिक गांव ऐसे हैं, जो अब बिल्कुल वीरान पड़े हैं और वहां बने भवन खंडहर में तबदील होते जा रहे हैं। इनमें अनेक भवन ऐसे भी हैं जो पहाड़ी संस्कृति एवं हस्तशिल्प की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण हैं। कुमाऊं में ऐसे वीरान भवनों को भी संरक्षण के लिए हो रहे सर्वे में शामिल किया जा रहा है।
राज्य के संस्कृति विभाग ने कुछ समय पूर्व उक्त 6 गांवों का सर्वे कराया था। जिन घरों में लोग मिले या जिनके मालिकों का पता लग गया, उन घरों का चिन्हीकरण कर लिया गया। इसके साथ ही ऐसे घर छोड़ दिए गए, जहां कोई नहीं मिला। लेकिन अब सरकार इन घरों को भी संरक्षण के दायरे में लेने जा रही है। सरकार की ओर से ऐसे 75 साल पुराने पहाड़ी शैली में बने घरों को संरक्षित कर उनके मालिकों को 50 हजार रुपये देगी। संस्कृति विभाग के सूत्रों के अनुसार ये घर जैसे बने हैं, उन्हें उसी रूप में संरक्षित किया जाएगा ताकि यहां की संस्कृति एवं भवन शैली को बचाया जा सके।
संस्कृति विभाग की निदेशक वीना भट्ट ने मीडिया को बताया कि कुमाऊं क्षेत्र के गांव गर्ब्यांग के सात, नपच्यो के पांच, गुंजी के बारह, नाबी के छह, रौंगकांग के सात और कुटी गांव के दस मकानों को संरक्षण के लिए चिन्हित किया गया है। अब कुमाऊं के बूंदी गांव को भी सर्वे में शामिल कर लिया गया है। उन्होंने बताया कि रवाईं क्षेत्र में भी पुराने घरों को संरक्षित करने का काम शुरू कर दिया गया है। रवाईं क्षेत्र के दो सौ घरों को तो जस का तस उठाकर ऐसी जगहों पर रखा जाएगा, जहां अधिक से अधिक पर्यटक उन्हें देख सकें। इस संबंध में एक समिति गठित भी की गई है।