नई दिल्ली। भारत में
मुंबई की झोपड़पट्टियों में रहने वाले लोगों के लिए शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के कारण माधव चौहान को ये सम्मान मिला है। डॉक्टर चौहान ने न सिर्फ गरीब बच्चों बल्कि पिछड़े वयस्कों को भी शिक्षित करने की कोशिश की। इस पुरस्कार के तहत उन्हें पांच लाख डॉलर की इनामी राशि दी गई है। पुरस्कार स्वीकार करते हुए माधव चौहान ने कहा, ‘अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।’
इस पुरस्कार के विजेता का फैसला एक अंतरराष्ट्रीय जूरी करती है। इस जूरी में यूएस लाइब्रेरियन ऑफ कांग्रेस डॉक्टर जेम्स बिलिंगटन, पेकिंग यूनिवर्सिटी के अध्यक्ष प्रोफेसर जोऊ कीफेंग, पूर्व संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त मैरी रॉबिन्सन और वाइज के चेयरमैन डॉक्टर अब्दुल्ला बिन अली अल थानी शामिल थे। इस पुरस्कार की घोषणा कतर की राजधानी दोहा में हुए सम्मेलन के दौरान हुई। इस सम्मेलन में डावोस की तरह प्लेटफॉर्म देने की कोशिश की जा रही है, जिसमें विचार-विमर्श के साथ-साथ कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं ताकि शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और नई कोशिश की जाती है।
सम्मेलन में जिन विषयों पर चर्चा होनी है, उनमें दुनियाभर के उन छह करोड़ 10 लाख बच्चों तक पहुंचना है, जिन्हें बुनियादी प्राथमिक शिक्षा भी नहीं मिल पाती है।
झोपड़पट्टियों से की शुरुआत
अमरीका से अपनी पढ़ाई पूरी करके भारत लौटने के बाद माधव चौहान ने अस्सी के दशक के आखिर में मुंबई की झोपड़पट्टियों में रहने वाले अशिक्षित लोगों के बीच अपना काम शुरू किया था।
यूनिसेफ और अन्य सरकारी संस्थाओं के साथ मिलकर माधव चौहान ने कम खर्च पर बड़ी संख्या में लोगों को शिक्षित करने का नया तरीका विकसित किया। उनकी चैरिटी संस्था प्रथम मंदिरों और दफ्तरों में क्लास चलाती है। साथ ही संस्था ने स्थानीय लोगों के बीच से वॉलंटियर्स को भी नियुक्त किया है। धीरे-धीरे ये अन्य शहरों और राज्यों में फैल गया और फिर ये भारत के वंचित बच्चों को शिक्षा प्रदान करने वाले सबसे बड़ा गैर सरकारी संगठन बन गया।
ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपने काम का प्रसार करने के अलावा माधव चौहान ने शिक्षा की गुणवत्ता पर भी जोर दिया। उन्होंने एक परियोजना बनाई ताकि उन बच्चों की समस्याओं पर भी ध्यान दिया जा सके, जो स्कूल तो जाते हैं, लेकिन उनकी शिक्षा का स्तर काफी कम है। उन्होंने शिक्षा परियोजनाओं के प्रभाव की निगरानी के लिए भी एक व्यवस्था बनाई ताकि आगे की कोशिशें सावधानीपूर्वक की जा सके।
वाइज पुरस्कार हासिल करते हुए उन्होंने कहा, ‘करीब 25 साल पहले मैंने देखा था कि मेरे देश के लाखों गरीब लोगों के जीवन में सुधार के लिए नई सोच की आवश्यकता है। ये पुरस्कार एक बड़ी बात है, जो मुझे यह अहसास कराती है कि अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। यह मेरे लिए बहुत बड़ा सम्मान है।’