कुल्लू। कुल्लू में अंतर्राष्ट्रीय दशहरा उत्सव की तैयारियां पूरे यौवन पर हैं। जिला प्रशासन और देव समाज से जुड़े लोगों के मध्य बैठकें चल
जिला प्रशासन ने मेले में सांस्कृतिक संध्याओं के लिए करीब डेढ़ दर्जन देशों के सांस्कृतिक दलों को आमंत्रित किया गया है, जिनमें से 12 देशों से सहमति पहुंच चुकी है। देव समागम के लिए 292 देवी-देवताओं को भी निमंत्रण पत्र भेजे गए हैं। यह विश्व विख्यात दशहरा उत्सव तीन से 9 अक्तूबर तक चलेगा।
दशहरा कमेटी के चेयरमैन एवं उपायुक्त राकेश कंवर ने बताया कि पहले बाहरी देशों से आने वाले कई सांस्कृतिक दलों में तीन या चार ही कलाकार हुआ करते थे, लेकिन इस बार सांस्कृतिक दलों के समक्ष 12 से लेकर 18 सदस्य होने की शर्त रखी गई है। करीब चार दिन तक विदेशी सांस्कृतिक दलों की ही प्रस्तुति रहेगी। इसके अतिरिक्त 15 अन्य राष्ट्रस्तरीय सांस्कृतिक दल भी यहां प्रस्तुति देंगे। प्रदेश के भी 12 जिलों के सांस्कृतिक यहां भाग लेंगे।
दशहरा उत्सव के लिए प्रशासन ने विभिन्न 292 देवी-देवताओं को निमंत्रण पत्र भेजे हैं। इनमें देवी हिडिंबा, बिजली महादेव, अधिष्ठाता खुडीजल, टकरासी नाग, कोट पझारी, चोतरू नाग, आदि ब्रह्मा, माता बूढ़ी नागिन घियागी आदि प्रमुख हैं। इनमें अनेक देवी देवता 150 से 200 किलोमीटर दूर आनी और निरमंड आदि से भी पहुंचते हैं। सरकार की ओर से देवी देवताओं को लाखों रूपये की राशि नजराने के रूप में दी जाती है। प्रशासन ने इस बार यह सुनिश्चित करने का भी प्रयास कि है कि कारदार देव परंपरा का निर्वहन करते हुए पालकियों में ही देवताओं लाएं। कारदारों को स्पष्ट कर दिया गया है कि देवी देवताओं को जीप या अन्य वाहनों में लाने पर उन्हें कोई नजराना नहीं दिया जाएगा। बहुत दूर से आने वाले देवी देवताओं के कारदार अक्सर देवरथों को जीप या अन्य वाहनों में लाते हैं, लेकिन इस बार इसकी सख्त मनाही है। जिला कुल्लू कारदार संघ के अध्यक्ष दोतराम ठाकुर ने भी प्रशासन के इस फैसले का स्वागत किया है।
उधर, मंदिरों में बलि प्रथा पर रोक लगाए जाने का जिला कारदार संघ कड़ा विरोध कर रहा है और प्राचीन ग्रंथों को आधार बनाकर हाईकोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने की तैयारी में है। संघ के महासचिव टीसी महंत का कहना है कि देवालयों और देव कृत्यों में बलि पर रोक लगने से देव समाज के लोग आहत हुए हैं। भगवान रघुनाथ के छड़ीबरदार महेश्वर सिंह का कहना है कि इस मामले में 26 सितंबर को ‘जगती’ आयोजित कर देवी देवताओं से राय ली जाएगी और उसके बाद ही आगामी रणनीति तय की जाएगी।
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