धर्मशाला। भाजपा की पराजय का ठीकरा शांता कुमार के ऊपर फोडऩे वाले पार्टी नेताओं के खिलाफ पूर्व मंत्री किशन कपूर ने मोर्चा खोल दिया
गौरतलब है कि विधानसभा चुनाव में मिली हार को लेकर नतीजों के फौरन बाद पार्टी में शांता कुमार पर हमलों का सिलसिला शुरू हो गया था। पराजय के कारणों पर मंथन के लिए पार्टी के तमाम नेता तीन जनवरी को ऊना में होने वाली पार्टी बैठक में जुटने जा रहे हैं। मगर इससे पहले ही ईंट का जवाब पत्थर से देने के लिए शांता समर्थकों ने कमर कस ली है। इस जंग में पूर्व विधायक प्रवीण शर्मा, जिला प्रधान रंजीत पठानिया, महामंत्री विनय शर्मा और मीडिया प्रभारी राकेश शर्मा आदि भी किशन कपूर के साथ खड़े हैं। हलका स्तर पर हार को सिलसिलेवार गिनाते कपूर कहते हैं कि वर्तमान पार्टी अध्यक्ष के ऊना जिले की दो सीटें भी तो नुक्सान के दायरे में हैं। फिर भी कांगड़ा को लेकर बवंडर खड़ा किया जा रहा है।
किशन कपूर ने कड़े शब्दों में कहा, ‘पार्टी में पांच साल तक शांता कुमार को जलील किया गया। सत्ता के दलालों ने चुने हुए प्रतिनिधियों और कर्मठ कार्यकर्ताओं की नजरअंदाज किया। अब पराजय की जिम्मेदारी सरकार संभाल चुके तथा संगठन चलाने वालों को लेनी होगी। ऐसा नहीं होगा कि जीत का लड्डू खुद खायें और पराजय का ठीकरा शांता पर फोड़ा जाए। ऐसी दोधारी तलवार नहीं चलने दी जाएगी। कांगड़ा को बांटने की कोशिशें की गईं। यह पूछा जाना चाहिए कि जिले के कई हलकों में चुनाव लडऩे की शह बागियों को किसने दी।’
उन्होंने कहा कि, ‘हार के कई कारण रहे हैं, पार्टी के अंदरूनी हालात को लेकर पहले भी आलाकमान से हम मिलते रहे हैं, आगे भी चर्चा होगी। लेकिन अपने खून पसीने से पार्टी को सींचने वाले शांता कुमार के खिलाफ आरोप दुर्भाग्यपूर्ण है। पार्टी को अपने खून पसीने से सींचने वाले शांता कुमार ने कबाइली इलाकों से लेकर प्रदेश भर में भाजपा की लौ जगा दी, मगर आज उसी पार्टी को तोडऩे के लिए शड्यंत्र रचे जा रहे हैं। लेकिन हम पार्टी को बर्बाद नहीं होने देंगे।’
उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान भाजपा में कुछ लोग बगैर कांगड़ा के सरकार बनाने के सपने देख रहे थे। लेकिन इतिहास बताता है कि इस जिले के योगदान के बिना सरकार की कल्पना भी नहीं की जा सकती। चुनाव में इस बात को फिर साबित किया है कि पार्टी के कुछ नेता ख्वाब में जी रहे थे।
बहरहाल इससे पहले भी श्रीकपूर का सरकार विरोधी तेवर अपनाने के लिए जाना जाता था। मगर अब शांता कुमार के मामले में उन्होंने सीधे संगठन के खिलाफ ही जंग छेड़ दी है।
‘कांगड़ा को नजरंदाज कर सत्ता पाने के सपने पड़े भारी’
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