नई दिल्ली।16 मार्च 2018 को डॉलर 65 रुपये का था..मैंने लिखा था कि दिवाली के पहले डॉलर 72 रुपये का दिखता है..आज 70.82 रुपये का है और दीवाली में लगभग 2 महीने है।..आजके हालात में मेरी स्टडी मुझे इशारा कर रही है कि मार्च 2019 तक डॉलर 75-78 रुपये तक पहुंच सकता है। ..अगर मैं गलत साबित हुआ तो सबसे ज्यादा खुशी मुझे ही होगी। ..26 मई 2014 को डॉलर की कीमत 58.50 रुपये थी।
- भारत में जीडीपी घट रही है। जीडीपी घट जाना कोई बहुत बड़ी बात नहीं होती, पर इसके साइड इफ़ेक्ट बहुत खतरनाक होते हैं।
- एक गलत धारणा है कि डॉलर मजबूत हो रहा है। Basket Of Currency अगर देखें तो डॉलर में कोई खास मजबूती नहीं है, दूसरे देशों की करेंसी खुद को डॉलर के मुकाबले एडजस्ट कर रही हैं, यानी जिसकी जितनी औकात…
- विश्व में ब्याज दर बढ़ रही है। यूरोप नया ग्रोथ सेंटर है, यानी विदेश में इन्वेस्टमेंट आकर्षक हो रहा है। भारत में पैसा नहीं आ रहा।
- डॉलर कैसे आता है किसी भी देश में- रेमिटेंस, व्यापार, घरेलू और विदेशी निवेश, क्रेडिट ग्रोथ, इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन वगैरह से। भारत में सारे अभी सबसे निचले स्तर पर हैं।
- भारत की ट्रेड डेफिसिट $ 18 बिलियन से ज्यादा है, यानी डॉलर की कमाई घट रही है। एक्सपोर्ट 24% घट चुका है।
- करेंट एकाउंट डेफिसिट पूरा करने के लिए मोदी सरकार विदेशी पैसों पर निर्भर है, जबकि सस्ते डॉलर के दूसरे ऑप्शन हैं- FCNR डिपाजिट, डॉलर में गवर्नमेंट सिक्योरिटी जारी करना।
- क्रूड पर ध्यान दीजिए Brent $77 के पार और WTI क्रूड लगभग $70 है। ये WTI $75 पर आ गया तो डॉलर 75 रुपये पलक झपकते दिखेगा। ..उसके बाद ‘दीनदयाल ही सहारा’..
- डॉलर रिज़र्व 6% तक घट चुका है, क्रूड में तेजी डॉलर रिज़र्व 10% तक खा जाएगा। ये सबसे खतरनाक बात है।
- नोटबन्दी और GST से FII घबराए हुए हैं। MSME का मृतप्राय हो जाना रुपये के लिए घातक हो गया। बैंक NPA का अपना प्रभाव है सो अलग।
रुपये का कमजोर होना कोई बुरी बात नहीं है, पर रुपया कमजोर होने के जो फायदे थे वो नहीं मिलना सबसे चिंता का विषय है। दंगों से चुनाव जीते जा सकते हैं, पर व्यापार नहीं बढ़ता। यह एक गधे को ‘दिव्यज्ञानी’ मान लेने का नतीजा है, तो भुगतिये!
(विख्यात अर्थशास्त्री Krishnan Iyer की वॉल से साभार)