जोगेंद्रनगर। प्रदेश में शासन व प्रशासन ने आजादी के दीवानों को लगता है भुला ही दिया है। जोगेंद्रनगर
102 वर्षीय परसराम उर्फ ‘जयहिंदिया’ नेरघरवासड़ा पंचायत के तहत पीहड़ गांव में अपने सबसे छोटे बेटे राजकुमार के पास एक छोटे से कमरे में रहते हैं। राजकुमार भी बेरोजगार हैं और परिवार को मुश्किल से पाल रहे हैं, क्योंकि सरकार ने उनके लिए नौकरी को कोई व्यवस्था नहीं की। राजकुमार कहते हैं कि उनके पिता को सम्मान के नाम पर अब औपचारिकता ही निभाई जा रही है। शाल-टोपी भी घर में ही आकर पहना दी जाती है, लेकिन यह देखने की किसी ने भी जहमत नहीं उठाई कि जीवन के अंतिम पड़ाव में वे किस हालत में रह रहे हैं।
इससे बड़ी अनदेखी क्या हो सकती है कि सरकार परसराम के घर तक पक्का रास्ता तक नहीं बना पाई है। उन्हें खेतों के टेढ़े-मेढ़े रास्ते से होकर घर पहुंचना पड़ता है। लाइट चली जाती है तो कई-कई दिन नहीं आती। पेयजल योजना में कोई नुक्स पड़ जाए दस-दस दिन तक कोई नहीं पूछता। आज भी परसराम उर्फ जयहिंदिया नेता जी सुभाष चंद्र बोस को रोज याद करते हैं, लेकिन जब उनसे गुलाम और आजाद भारत की स्थिति के बारे में प्रश्न किया जाता है तो सिर झुका कर चुप्पी साध लेते हैं।
परसराम वर्ष 1931 में डोगरा रेजीमेंट में भर्ती हुए थे। बाद में उन्होंने अन्य साथियों के साथ मिल कर अंग्रेजों के खिलाफ बगावत कर ली और नेता जी सुभाष चंद्र बोस के साथ आजाद हिंद फौज में चले गए थे। आजादी की लड़ाई में वे चार बार जेल भी गए। इसी कारण गांव में उन्हें जयहिंदिया के नाम से ही पुकारा जाता है। नेता जी की बहुत सी बातें वे रह-रहकर दोहराते हैं। उनकी पत्नी का कई साल पहले देहांत हो गया है। तीन बेटे हैं जिनमें से सबसे बड़ा नागेंद्र बिजली बोर्ड में है, जबकि दोनों छोटे बेटे सुभाष और राजकुमार जैसे तैसे परिवार का गुजारा करते हैं।