चंडीगढ़। भाजपा ने राजस्थान, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के बाद अब हरियाणा में भी श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलाव कर दिए हैं। राज्य विधानसभा के बजट सत्र में 30 मार्च को इस बारे में गुपचुप रूप से बिल पेश किया और पारित भी करवा लिया गया। माना जा रहा है कि श्रम कानूनों में इन बदलावों के चलते 90 प्रतिशत से ज्यादा औद्योगिक इकाइयों के मजदूर न्यूनतम श्रम आधिकारों से ही वंचित हो जाएंगे।
सरकार की इस गुपचुप कार्यवाही की सूचना मिलते ही तुरंत हरियाणा से लेकर दिल्ली तक मजदूर संगठनों ने इसकी कड़ी निंदा की और चेतावनी दी कि इसका हर स्तर पर विरोध किया जाएगा। सीटू सहित विभिन्न मजदूर संगठनों की 4 अप्रैल को गुड़गांव में हुई एक संयुक्त बैठक में निर्णय लिया गया कि एक मई को मजदूर दिवस पर संयुक्त रूप से जिला मुख्यालयों में धरना प्रदर्शन किए जाएंगे, जबकि 11 मई को गुड़गांव में विरोध रैली की जाएगी।
क्या बदलाव हुएः राज्य सरकार ने कारखाना अधिनियम- 1948 में संशोधन कर बिजली से संचालित संस्थानों में पंजीकरण के लिए श्रमिकों की संख्या 10 से बढ़ा कर 20 कर दी है। इसी प्रकार बिना बिजली के चलने वाले कारखानों के पंजीकरण के लिए मजदूरों की संख्या 40 कर दी गई है, जबकि पहले यह शर्त 20 मजदूरों की थी। एक और बदलाव करते हुए राज्य सरकार ने मजदूरों के किसी भी तिमाही ओवरटाइम को भी दुगना कर दिया है। पहले यह ओवरटाइम 75 घंटे तक था, लेकिन अब इसे बढ़ाकर 150 घंटे कर दिया गया है। इसमें सरकार ने एक प्रकार से गैर कानूनी रूप से मजदूरों से 12-12 घंटे करवाए जा रहे कार्यों को ही वैध कर दिया है।
एक और मजदूर विरोधी बदलाव करते हुए कारखाना अधिनियम 1948 में व्यवस्था की गई है कि किसी भी संस्थान या फैक्टरी के बारे में शिकायत पर न्यायालय या मुख्य निरीक्षक की लिखित में स्वीकृति से पूर्व कोई जांच नहीं हो सकती हैं।
सरकार ने औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में बदलाव करते हुए छूट दी गई है कि कोई भी संस्थान या फैक्टरी, जिसमें नियमित मजदूरों की संख्या 300 तक है, उसे बिना किसी सरकार की अनुमति के बंद कर सकता है। अभी तक केवल 100 मजदूरों तक के संस्थानों में ही यह संभव था। इसी प्रकार ठेका श्रम ( नियमन एवं उन्मूलन) अधिनियम 1970 में बदलाव करके किसी भी ठेकेदार या संस्थान को 50 तक ठेका मजदूर रखने के लिए किसी तरह के पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होगी। अभी तक 20 मजदूरों पर पंजीकरण अनिवार्य था।
मजदूरों का शोषण और बढ़ने की आशंकाः माना जा रहा है कि श्रम कानूनों में इन बदलावों के चलते 90 प्रतिशत से ज्यादा औद्योगिक इकाइयों के मजदूर न्यूनतम श्रम आधिकारों से ही वंचित हो जाएंगे। मौजूदा कानूनों में बदलाव से पहले भी हरियाणा में मजदूर अधिकारों पर बड़े पैमाने पर हमले होते रहे हैं। मलिकों द्वारा श्रम कानूनों की बड़े पैमाने पर उल्लंघना की जाती रही है। लिबर्टी, होंडा, मारुति आदि दर्जनों उदाहरण हैं, जहां बड़े पैमाने में श्रम कानूनों का उल्लंघन कर मजदूरों का शोषण हुआ है।अभी भी गुड़गांव में 20 से अधिक कंपनियों में विवाद लंबित हैं, जिनका लंबे अरसे से निपटारा नहीं हो रहा है।