शिमला। हिमाचल प्रदेश में सेब के दामों में अचानक आई भारी गिरावट ने बागवानों को हिलाकर रख दिया है। सेब सीजन अब उस दौर में है जहां इसका तुड़ान भी अधिक समय तक नहीं रोका जा सकता है। जिन क्षेत्रों में पिछले दिनों भारी ओलावृष्टि हुई थी, वहां से तो सेब मंडियों में लाया ही नहीं जा रहा। उनका सेब बागीचों में ही सड़ रहा है, लेकिन जहां अच्छी क्वालिटी का सेब है, उसे भी सही दाम नहीं मिल रहे हैं।
मशोबरा के साथ लगते- सीपुर, शाली, देवठी, सीतापुर, मूलकोटी, कंडा आदि गांवों में ओलावृष्टि के चलते सेब बी-ग्रेड का है। मार्किट की हालत को देखते हुए वहां का सेब बागीचों में ही सड़ने के लिए छोड़ना पड़ा है। स्थानीय बागवानों- बाला राम, शिवलाल, ओम प्रकाश, हितेंद्र कुमार और हीरा मोहन आदि ने बताया कि इस बार भरपूर फसल होने के बावजूद वे खाली हाथ हैं। ऐसा सेब जिस रेट पर मार्किट में बिक रहा है, उससे तो किराया भाड़ा पूरा होना भी मुश्किल है।
कोटगढ़ के प्रगतिशील बागवान हरिचंद रोच (85) कहते हैं कि, “बागवानों को सरकार से अब उर्वर्कों, दवाइयों पर कोई सबसिडी नहीं मिलती है, जिस कारण सेब पर इनपुट लागत 20 से 25 तक प्रतिशत बढ़ गई है। इसके विपरीत सेब का भंडारण करने वाली कंपनियों ने खरीद मूल्य 18 प्रतिशत घटा दिए। बागवानों की आय में इससे कम से कम 40 प्रतिशत की गिरावट आएगी।”
हरिचंद रोच 1956-57 से सेब उत्पादन में सक्रिय है और हर वर्ष चार से पांच हजार पेटियों का उत्पादन करते हैं। वे कहते हैं, “व्यवस्था ही ऐसी है कि बागवान सेब पैदा करता है, लेकिन मोलभाव की ताकत लदानियों और आढ़तियों के हाथ में ही होती है। बागवान थोड़े से वक्त में ही सेब बेचेंगे, जबकि व्यापारी नौ महीने बेचेंगे। बागवानों को जब तक कोल्ड स्टोरेज की सुविधा नहीं मिलेगी, उसे नुकसान उठाना ही पड़ेगा।”
सेब के दामों में भारी गिरावट से मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी चिंचित हैं। उन्होंने बागवानों को मार्किट में कम फसल भेजने का सुझाव दिया है, लेकिन बागवानों का कहना है कि तैयार फसल को अधिक समय तक नहीं रोका जा सकता है। इससे और भी अधिक नुकसान होगा।
हिमाचल प्रदेश किसान संघर्ष समिति के महासचिव संजय चौहान कहते हैं कि केंद्र सरकार ने जिस तरह नेफेड के जरिये कश्मीरी सेब उत्पादकों के लिए डायरेक्ट बेनिफिट स्कीम (डीबीटी) लागू की थी और पांच हजार करोड़ का सेब खरीदा था, उसी तर्ज पर हिमाचल के लिए भी कोई रास्ता निकाला जाए ताकि राज्य की 5000 करोड़ की इस अर्थव्यवस्था को संभाला जा सके।
उन्होंने कहा कि सरकार को एमआईएस के तहत ए ग्रेड 60 रुपये, बी ग्रेड 44 रुपये और सी ग्रेड का सेब 24 रुपये प्रति किलो के रेट पर खरीदने की तुरंत व्यवस्था करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि बागवानों की समस्याओं पर चर्चा के लिए संयुक्त किसान मंच ने सितंबर के पहले सप्ताह में बैठक बुलाई है।
रोकना पड़ा सेब का तुड़ानः भरमौर (चंबा)। पंजाब की मंडियों में सेब के वाजिब दाम न मिलने से भरमौर के बागवानों ने बागीचों में सेब तुड़ान रोक दिया है। रॉयल और गोल्डन सेब की दस किलोग्राम की पेटी 220 से 250 रुपये में बिक रही है, जिससे फसल की लागत भी पूरी नहीं हो रही। मजबूरन बागवानों को बगीचों में तुड़ान कार्य रोकना पड़ा है।
सेब उत्पादक संगठन भरमौर के अध्यक्ष सुरेश कुमार ठाकुर ने कहा कि बागवानों को मेहनत के अनुरूप सेब के दाम नहीं मिल रहे हैं। बाहरी मंडियों जालंधर, अमृतसर और पठानकोट में रॉयल और गोल्डन सेब की प्रति पेटी 220 से 250 रुपये में बिक रही है। नतीजतन, बागवानों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। सरकार की ओर से बागवानों के लिए कोई राहत नहीं दी जा रही है।
बागवान भगवान दास ने कहा कि बागीचे से सेब तुड़ान के लिए प्रति पेटी दस रुपये प्रति मजदूर ले रहे हैं। इसके अलावा 20 रुपये प्रति पेटी पैकिंग के लिए जाते हैं। कार्टन के दामों में भी वृद्ध हुई है, ढुलाई भाड़ा भी पहले के मुकाबले काफी बढ़ गया है। बागवानों के सेब की एक पेटी पर 200 से 245 रुपये तो लागत ही आ रही है। लगभग इसी रेट पर मंडियों में सेब बिक रहा है। बागवानों का बर्बाद होना तय है। सरकार को कोई ठोस पग उठाने चाहिए।