शिमला। जनजातीय जिला किन्नौर में एक बार फिर से विद्युत परियोजनाओं और उनके मजदूरों के मध्य टकराव की टंकार गूंजने लगी है। निर्माणाधीन जल विद्युत परियोजना शौंगठोंग- करछम के मजदूरों ने पिछला तीन माह का वेतन और श्रम कानून लागू करने की मांग की तो प्रशासन ने उनकी आवाज को दबाने के लिए धारा 144 लगा दी है। एक अन्य विद्युत परियोजना करछम- वांगतू में ऐसे ही कारणों के चलते पिछले एक वर्ष से धारा 144 लगी हुई है। क्षेत्र की विभिन्न विद्युत परियोजनाओं के मजदूर और स्थानीय लोग आंदोलनकारी मजदूरों के समर्थन में एकजुट होने लगे हैं। आंदोलन का नेतृत्व वामपंथी मजदूर संगठन सीटू कर रहा है।
चीन (तिब्बत) के साथ अंतर्राष्ट्रीय सीमा के निकट स्थित किन्नौर के इस क्षेत्र में सरकार दमनकारी विद्युत परियोजना कंपनियों और स्थानीय जनता एवं मजदूरों के मध्य सौहार्दपूर्ण माहौल स्थापित करने में पूरी तरह नाकाम रही है। इस समय लगभग आधा जनजातीय किन्नौर जिला धारा 144 के अधीन है। स्थानीय जनजीवन भी इससे प्रभावित हो रहा है। क्षेत्र के जागरूक लोगों ने प्रदेश व केंद्र सरकारों को कई बार सचेत किया अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर यह स्थिति सामरिक दृष्टि से भी घातक है, लेकिन इस ओर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया।
शौंगठोंग—करछम परियोजना क्षेत्र में शनिवार को प्रशासन ने जैसे ही धारा 144 लागू करने की घोषणा की, मजदूरों का गुस्सा और भड़क गया। इससे पूर्व शुक्रवार को परियोजना से दस मजदूरों को नौकरी से बाहर कर दिया था। गुस्साए मजदूरों ने उपायुक्त किन्नौर और परियोजना प्रबंधन के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। सीटू के राज्य अध्यक्ष जगत राम, उपाध्यक्ष बिहारी सेवगी, राज्य कमेटी सदस्य अनिल सोनी और शौंगठोंग करछम परियोजना इकाई के प्रधान सूर्य प्रकाश, महासचिव शक्ति कुमार, उप प्रधान पवन नेगी आदि ने आंदोलनकारियों को संबोधित करते हुए कहा, “परियोजना में पिछले तीन माह से मजदूरों को वेतन नहीं दिया जा रहा है। सरकार द्वारा पारित श्रमकानूनों को यहां सिरे से नकार दिया गया है। बड़ी संख्या में मजदूरों को न्यूनतम वेतन तक नहीं दिया जा रहा। ऐसे में प्रशासन को मजदूरों के सहयोग के लिए आगे आना चाहिए, लेकिन ये तो परियोजना प्रबंधन का ही हुकम बजाने का काम कर रहा है।”
सीटू के राज्य अध्यक्ष जगत राम ने मीडिया से बातचीत करते हए कहा कि शौंगठोंग- करछम परियोजना में प्रबंधन जिला प्रशासन के सहयोग से दमनकारी नीति अपनाए हुए है। करीब 850 मजदूरों को पिछले तीन माह से वेतन नहीं दिया गया है, जिस कारण उनके लिए परिवार का भरण पोषण करना मुश्किल हो गया है। उन्होंने कहा कि पीड़ित मजदूरों के समर्थन में शीघ्र ही स्थानीय लोगों के अतिरिक्त करछम- वांगतू और बास्पा परियोजनाओं के मजदूर भी सड़क पर उतरने की तैयारी में है। उन्होंने चेतावनी दी कि परियोजना प्रबंधन ने यदि मजदूरों की मांगें शीघ्र नहीं मानीं तो वह एक बड़े आंदोलन का सामना करने के लिए तैयार रहे।
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