नई दिल्ली। सुप्रीमकोर्ट ने सोमवार को अपने अंतरिम फैसले में कहा कि आवश्यक सेवाओं जैसे एलपीजी कनेक्शन, टेलिफोन जैसी सुविधा हासिल करने के
भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण और केन्द्र सरकार के वकील ने कहा कि केन्द्र सरकार इस मामले में पहले ही स्पष्ट कर चुकी हैं कि आधार कार्ड बनवाना या ना बनवाना व्यक्ति की इच्छा पर है। हालांकि, सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को यह भी निर्देश दिया है कि इस बात का ध्यान रखा जाए कि किसी भी अवैध नागरिक का आधार कार्ड न बने। उल्लेखनीय है कि देश में जब आधार कार्ड परियोजना की मुहिम की शुरुआत हुई थी तो कहा जा रहा था कि तमाम सरकारी परियोजनाओं का लाभ आधार कार्ड रखने वाले उपभोक्ताओं को सीधे मिलेगा। रसोई गैस पर दी जाने वाली सब्सिडी आधार कार्ड से जुड़े आपके बैंक अकाउंट में आएगी। सब्सिडी की राशि तभी अकाउंट में आएगी, जब आपने आधार कार्ड बनवाकर अपने बैंक अकाउंट से उसे लिंक कराया होगा। ऐसे में माना जा रहा था कि इस परियोजना के इस्तेमाल से उन लोगों पर नकेल कसी जाएगी जो फर्ज़ी तरीके से सरकारी अनुदान का लाभ उठा रहे हैं। दिल्ली जैसे कुछ राज्यों ने सरकारी अनुदान लेने के लिए आधार कार्ड का होना अनिवार्य कर दिया था। जबकि महाराष्ट्र और झारखंड जैसे राज्यों में पेंशन लेने, छात्रवृत्ति लेने और संपत्ति की खरीद के लिए आधार कार्ड को अनिवार्य किया था। जस्टिस बीएस चौहान और एसए बोब्डे की सदस्यता वाली सुप्रीमकोर्ट के बेंच के फ़ैसले ने ऐसी किन्हीं कोशिशों को नाकाम कर दिया है।
15 हज़ार करोड़ की आधारहीन परियोजनाः इंफोसिस के सह संस्थापक रहे नंदन नीलकेणी के नेतृत्व में भारत में आधार परियोजना की शुरुआत 2009 में हुई। करीब 15 हज़ार करोड़ रुपये की इस परियाजोना के तहत देश के प्रत्येक नागरिक को 12 नंबरों का पहचान अंक दिया जा रहा है। लेकिन इस परियोजना पर लगातार सवाल उठते रहे हैं और इसको लेकर अभी तक कोई कानून भी नहीं बना है। जनहित याचिक में ये भी कहा गया था कि आधार कार्ड भारतीय संविधान की धारा 21 का उल्लंघन है जिसमें लोगों को जीवन जीने का अधिकार मिला हुआ है और यह कॉर्ड लोगों की गोपनीयता में दखल देता है। इस याचिका में आधार कार्ड के लिए बायोमैट्रिक पहचान लेने पर सवाल उठाते हुए कहा गया कि अमरीका और ग्रेट ब्रिटेन की अदालतों ने बायोमैट्रिक डाटा संग्रह करने को निजता का उल्लंघन बताया है।
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