नई टिहरी। उत्तराखंड में देश का सबसे बड़ा प्रस्तावित सस्पेंशन पुल डोबरा-चांठी नालायक इंजीनियरिंग, प्रशासनिक कुप्रबंध और सरकार की लापरवाह नीति
विभागीय सूत्रों के अनुसार टिहरी बांध के ऊपर बनने वाले डोबरा-चांठी पुल के निर्माण पर अभी तक 124 करोड़, 10 लाख 71 हजार 849 रुपये खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन सिवाय दो खंभों के कुछ भी नहीं बन पाया। फिलहाल वीके गुप्ता एंड एसोसिएटस चंडीगढ़ पुल के निर्माण का काम देख रही थी।
अब आइआइटी रुड़की और खड़गपुर ने भी पुल निर्माण के डिजायन को लेकर हाथ खड़े कर दिए हैं, जिस कारण उत्तराखंड सरकार ने एक विदेशी कंपनी को पुल के निर्माण के लिए चुना है। बीती 27 जुलाई को यूएसए की फ्लींट एंड नील कंपनी के अधिकारी देहरादून में हुई एक बैठक में सरकार के सामने इसके लिए प्रेजेंटेशन भी दे चुके हैं। सरकार के साथ शीघ्र ही कंपनी के अधिकारियों की एक और बैठक होने जा रही है। कंपनी का दावा है कि अगर पुल निर्माण की प्रक्रिया में कोई बाधा नहीं आई तो यह कार्य दो वर्षों में पूरा हो जाएगा।
लोक निर्माण विभाग के खंड नई टिहरी के अधिशाषी अभियंता अशोक कुमार के अनुसार इस पुल के लिए यूएसए की फ्लींट एंड नील कंपनी देहरादून में प्रेजेंटेशन दे चुकी है, जल्द ही दूसरी बैठक होगी। उसके बाद अगर सब कुछ सही रहता है तो अब यही कंपनी पुल का निर्माण करेगी।
डिजाइन से पूर्व ही खरीद डाले 35 करोड़ उपकरण
उत्तराखंड में डोबरा-चांठी पुल आरंभ से ही विवादों में रहा है। टिहरी बांध बनने के बाद बांध प्रभावितों की पुरजोर मांग पर सरकार ने वर्ष 2006 में डोबरा-चांठी पुल बनाने की घोषणा की। पुल बनाने की अभी तैयारियां ही चल रही थीं तथा इसका डिजाइन भी तय नहीं हुआ था कि सरकारी तंत्र ने अति उत्साह में इसके लिए लगभग 35 करोड़ रुपये के उपकरण भी खरीद डाले और अब वे जंग खा रहे हैं।
लोक निर्माण विभाग ने 440 मीटर लंबे इस पुल के लिए वर्ष 2008 में ही वायर रोप्स भी खरीद लिए, जो अभी तक जंग खा रहे हैं। कलकत्ता और रांची में निर्मित इन वायर रोप्स की टेस्टिंग स्विजरलैंड में कराई गई थी। इसके अतिरिक्त सॉकेट, सस्पेंडर, डाया एंकर रॉड़, नेट ब्लाक सॉकेट आदि भी खरीदे गए। जानकारों के अनुसार डिजाइन तय होने से पूर्व इस तरह के उपकरण नहीं खरीदे जा सकते, लेकिन कथित रूप से मोटी कमीशन के लालच में इन्हें समय से पूर्व ही खरीद लिया गया।
डोबरा-चांठी पुल समय पर तैयार नहीं होने से टीहरी बांध प्रभावित प्रतापनगर के लोगों की मुश्किलें जस की तस बनी हुई हैं। उम्मीदों में ही सात साल निकल गए, लेकिन पुल नहीं बन पाया, जिस कारण बांध प्रभावितों में शासन व प्रशासन के प्रति भारी आक्रोश है। क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता राजेश्वर प्रसाद पैन्यूली कहते हैं-बांध प्रभावितों की समस्याओं को लेकर कोई भी सरकार गंभीर नहीं है अन्यथा पुल का निर्माण काफी पहले हो जाना चाहिए था। अब तो ग्रामीणों के पास आंदोलन ही एक विकल्प बचा है।