शिमला। हिमाचल प्रदेश संयुक्त किसान- बागवान मंच के नेतागण दिल्ली प्रदर्शन में व्यस्त थे, पीछे से सक्खू सरकार ने सेब विपणन पॉलिसी को लेकर खेला कर दिया। सरकार ने राज्य कृषि विपणन बोर्ड के माध्यम से सर्कुलर जारी कर सेब विपणन के लिए जो नए मानदंड निर्धारित किये हैं, उसमें और कुछ नहीं, बागवानों की लूट के लिए पहले से चल रही व्यवस्था को ही घुमाफिरा कर लागू करने की बात है।
सरकारी सर्कुलर के अनुसार बागवान यूनिवर्सल, टेलिस्कोपिक कार्टन या प्लास्टिक क्रेट किसी में भी सेब मंडियों में भेज सकते हैं। पैकिंग में 24 किलोग्राम से अधिक सेब नहीं होने चाहिए। सेब वजन के हिसाब से तोल कर बेचे जाएंगे। यह भी कि बागवान अनिवार्य रूप से पेटी पर वजन लिख कर रखेंगे। यानी पेटियां घर से तोल कर लाएंगे।
अब सवाल ये है कि यूनिवर्सल कार्टन बॉक्स 20 किलोग्राम का है और प्लॉस्टिक की क्रेट में भी इतना ही सेब आ सकता है तो 24 किलोग्राम तक सेब भरने की छूट क्यों?
टेलिस्कोपिक कार्टन बॉक्स में ग्रेड बढ़ाकर या अतिरिक्त लेयर डाल कर अधिक सेब भरा जा सकता है। ग्रेड बढ़ाकर भरेंगे तो सेब के स्टेंडर्ड ग्रेड, जिसकी बागवान हमेशा से मांग करते आ रहे हैं, का क्या होगा? यदि पेटी में अतिरिक्त लेयर भरते हैं तो क्या गारंटी है कि पेटी 24 किलोग्राम से अधिक नहीं भरेगी?
अब बात प्लास्टिक क्रेट की भी करते हैं। बागवान फ्रूट मंडी में क्रेट में सेब लेकर आएंगे तो उसे बेचेंगे कैसे? इसके लिए क्या व्यवस्था है? क्या व्यापारी क्रेट खाली कर के माल ले जाएंगे या फिर बागवानों को बदले में खाली क्रेट उपलब्ध कराएंगे? सरकार की पॉलिसी में इसे लेकर कुछ भी स्पष्ट नहीं है।
यह भी कि घर पर बागवान कैसे हर बॉक्स का वजन करके, इसमें लिखेगा। इतना समय सीज़न में किसके पास होता है? क्या बागवानों को भी तोलने के लिए कांटा रखना पड़ेगा?
मार्किट यार्ड में हर बॉक्स का वज़न करना तो दूर की बात है, बोली पर रखे गए विभिन्न ग्रेड्स के बक्सों का वज़न करना भी आसान नहीं है। मंडी में इतना समय होता कहां है?
इसलिए बागवान 20 किलोग्राम का यूनिवर्सल कार्टन लागू करने की मांगकर रहे था। उसमें प्रशासन को भी तोल तुलाई के झंझट से छुटकारा मिलता और किसानों को भी सहूलियत होती, लेकिन सरकार आढ़तियों, व्यापारियों की लॉबी के आगे झुक गई।
टेलिस्कोपिक कार्टन की अतिरिक्त सेब भरी हुई पेटी को कुछ अधिक दाम मिलने के कारण बागवान यूनिवर्सल कार्टन क्यों अपनाएंगे? बागवानों की पहली मांग यूनिवर्सल कार्टन ही थी, जिसमें स्टेंडर्ड ग्रेड और वजन दोनों की शर्तें पूरी होती हैं। यूनिवर्सल कार्टन में सभी ग्रेड्स का लगभग बीस- साढ़े बीस किलो सेब आता है। इसका डेमोंस्ट्रेशन प्रगतिशील बागवान संगठन कर भी चुके हैं।
…तो फिर कुल मिलाकर सेब पहले की तरह केवल टेलिस्कोपिक कार्टन में ही बिकेंगे, वह भी स्टैंडर्ड ग्रेड और वजन के मानकों की परवाह किए बगैर। व्यस्त सीजन में वजन 24 से 26 और फिर 26 से 30 किलोग्राम होते देर नहीं लगेगी। कौन चैक करता है? क्या सरकार के पास इसकी व्यवस्था है?
यहां पहले भी तो यही हुआ था। क्या पहले टेलिस्कोपिक बक्से में 30-35 किलो सेब भरने की इजाजत थी? आढ़तियों- व्यापारियों के दबाव में ही बागवान ऐसा करने के लिए मजबूर होते हैं। कुल मिलाकर कहानी जहां से शुरू हुई थी, वहीं पहुंचा दी गई है। एक कदम आगे न पीछे।
और हां, चुनाव के दौरान कांग्रेस ने बांगवानों को अपनी उपज के दाम स्वयं तय करने की व्यवस्था देने का वादा किया था, लेकिन….