…यूं तो हिमाचल में कोई भी सरकार लीक प्रूफ नहीं रही। कांग्रेस के शासन में CPMT घोटाला हुआ। याद्दाश्त कमज़ोर हो गई हो तो ज़रा दिमाग पर थोड़ा ज़ोर डालें और याद कर लें।
लेकिन वर्तमान सरकार में तो लीकेज के सारे रिकॉर्ड ही टूट गए। अगर कहीं लीकेज की रैंकिंग का सर्वे हो जाए तो दावे के साथ कह सकते हैं कि शिखर पर हिमाचल होगा। इतनी लीकेज तो शायद नगर निगम की पाइपों में भी न होती हो, जितनी प्रदेश सरकार की भर्तियों की परीक्षाओं में हो गई। साढ़े चार साल के भाजपा कार्यकाल में नौकरियों के लिए शायद ही कोई परीक्षा ऐसी रही हो जिसमें लीकेज न हुई हो या फिर न्यायालय में मामला न गया हो। जहां सब कुछ निपट गया वहां ज्वाइनिंग ही नहीं हो रही।
दुखद पहलू यह है कि इस लीकेज के भयानक परिणाम नज़र आने लगे हैं। जिस ग्राउंड को नौजवानों ने अपनी मेहनत से क्लीयर किया, उसी ग्राउंड में वे आत्महत्या कर रहे हैं।
ऐसा भी नहीं है कि भाजपा के समय नौकरियों में कोई भर्ती नहीं हुई। भर्तियां हुई, लेकिन उसमें न तो कोई खुली प्रतिस्पर्धा हुई, न नियम-कानून का पालन और न ही योग्यता उसका पैमाना रहा। पैमाना बस एक ही रहा – क्या वह सत्ता के लग्गू-भग्गू हैं, क्या उन्होंने निक्कर धारण की है, क्या किसी मंत्री-वंत्री के रिश्तेदार, चहेते हैं। लब्बोलुआब यह कि भर्ती करवानी हो तो निक्कर ही एकमात्र ऐसा कवच है जो लीक प्रूफ है और लीकेज का शर्तिया इलाज है। इतना शर्तिया इलाज कि ऐसी गारंटी बंगाली डॉक्टर भी नहीं दे सकते।
अब नौजवानों के सामने दो विकल्प हैं – पहला यह कि सभी नौजवान लीक प्रूफ खाकी निक्कर धारण कर लें या फिर संघर्ष करें।
मुझे पहला विकल्प इसलिए ज्यादा सुरक्षित और व्यवहारिक लगता है कि अगर निक्कर धारण करके आपको नौकरी न भी दे पाए तो भी इस अमृतकाल में आपको स्वर्ण-अवर्ण, लाउड स्पीकर, मंदिर-मस्जिद के विवादों में इतना व्यस्त कर दिया जाएगा कि आप और कुछ सोच ही न पाएं। स्कूल की किताब छीनकर हनुमान चालीसा पढ़ने में लगा दिया जाएगा और आप स्कूल, कॉलेज में भी हनुमान चालीसा का गुटका पाठ्यक्रम की किताब के बीच में रखकर रटते-जपते रहेंगे।
कुछ और न हो पाया तो कम से कम बेरोज़गार नौजवानों को हिंदुत्व के पहरेदार का गरिमामय पद देकर फुल टाइम फ्री सेवाएं लेने के लिए ही तैनात कर लिया जाएगा। आपको एक लट्ठ भी थमा दिया जाएगा। कोई अति उत्साहित अज्ञानी कार्यकर्ता मिल गया तो लट्ठ का एडवांस वर्जन भी मुहैया करवा दिया जाएगा। ध्यान दीजिए – इसका फायदा आपको ये होगा कि आप इन सब में इतने व्यस्त हो जायेंगे कि आपको रोज़गार पाने का ख्याल ही नहीं रहेगा। सरकार का सरदर्द भी खत्म और बिना पैसे के लट्ठ सेना भी तैयार।
हां, दूसरा रास्ता थोड़ा सा संघर्ष का है। मुश्किल भी है, सत्ता से टकराव भी संभव है। दूसरे रास्ते में खतरा ये हैं कि सरकार की कुर्सी हिलेगी। कुर्सी कहीं ज़ोर से हिली तो सरकार डुलेगी। डुल गई तो आप समझ सकते हैं कि मरता क्या न करता। सरकार के पास आपके गुस्से की आग को शांत करने के लिए अग्निशमन की पिचकारियां हैं, इलाज के लिए चमचमाते लट्ठ हैं, तिस पर भी न मानें तो फिर कारगर इलाज के लिए आदर्श कारागार तो है ही।
हां, अगर इस रास्ते पर आप डटे रहे और सत्ता को सताने में कामयाब हो गए तो भर्ती की संभावनाएं बन भी सकती है प्यारे भांजों। …फैसला हिमाचल के नौजवानों को ही करना है।
-लेखक जीयानंद शर्मा एक जाने माने सामाजिक कार्यकर्ता एवं टिप्पणीकार हैं।