शिमला। हिमाचल प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रों से बहिष्कार की खबरों के बावजूद संसदीय चुनाव
उधर, विकास कार्यों में अनदेखी का आरोप लगाते हुए कुल्लू, लाहुल स्पीति, मंडी, चंबा, कांगड़ा और हमीरपुर जिलों में 19 गांवों ने इस चुनाव का बहिष्कार किया। ग्रामीणों की शिकायत है कि नेतागण विकास कार्यों के केवल वायदे करते हैं और चुनाव जीतने के बाद भूल जाते हैं। कुल्लू जिला में मनाली के विख्यात पर्यटक स्थल सोलंगनाला में सोलंग गांव के वासियों की शिकायत है कि वे पिछले कई वर्षों से ब्यास नदी पर एक पुल की मांग कर रहे हैं, जो वर्ष 2005 की बाढ़ में बह गया था, लेकिन उनकी कहीं भी सुनवाई नहीं हो रही। ग्रामीणों ने इसी कारण वर्ष 2013 में हुए संसदीय उपचुनाव में भी मतदान का बहिष्कार किया था और इस बार भी उन्होंने मतदान नहीं किया।
कुल्लू और लाहुल-स्पीति जिलों के करीब नौ पोलिंग बूथों पर ग्रामीणों ने वोट नहीं डाले। कुछ बूथों पर इक्का-दुक्का वोट ही पड़े। आनी विस क्षेत्र में बखनाओं और शिल्ली पंचायतों के दो पोलिंग बूथों गाड और बाश्ला में एक भी वोट नहीं पड़ा। मंडी जिला के करसोग विधानसभा क्षेत्र में दो पोलिंग बूथों में ग्रामीणों ने सड़क सुविधा नहीं मिलने पर मतदान का बहिष्कार किया। यहां परलोग बूथ पर मात्र एक ही वोट पड़ा तथा माजू गांव के लोगों ने भी वोट नहीं डाले। चंबा जिले में बड़ग्रां पंचायत के तहत भादरा पोलिंग बूथ, भटियात विधानसभा क्षेत्र के तहत जंगरोग पंचायत के चक्की पोलिंग बूथ और कांगड़ा जिले में शाहपुर विस क्षेत्र के तहत कलरू के मतदान केंद्र में भी कोई वोट नहीं पड़ा। हमीरपुर विस क्षेत्र के तहत गांव लाग नंबर के वासियों ने भी संसदीय चुनाव का पूर्ण बहिष्कार किया।
संसदीय चुनाव के लिए शिमला जिले में सामान्य तो ऊना, हमीरपुर और सिरमौर जिलों में भारी मजदान हुआ है। प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा हालांकि जीत के दावे तो बढ़ चढ़ कर कर रहे हैं, लेकिन अंदर से सभी डरे हुए हैं और सभी मतगणना (16 फरवरी) का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।