उत्तरकाशी। कड़ी मेहनत से तैयार की फसल जब आंखों के सामने बर्बाद हो रही हो या फिर कौड़ियों के दाम पर बिक रही हो तो किसान भीतर तक टूट जाते हैं।
प्राकृतिक आपदा में गंगोत्री हाईवे तबाह होने पर उपला टकनौर क्षेत्र में सेब की फसल के बागीचों में ही सड़ने का संकट खड़ा हो गया था। सरकार ने 30 रुपये प्रति किलो समर्थन मूल्य पर जीएमवीएन से 16333.51 क्विंटल सेब की खरीद कराई। अगस्त में शुरू हुई खरीद सितंबर तक चली। निगम ने उपला टकनौर के हर्षिल, मुखबा, धराली, छोलमी, सुक्की, जसपुर, झाला, बगोरी से काश्तकारों से सेब तो खरीद लिए, लेकिन उनके भंडारण की कोई उचित व्यवस्था नहीं की। भारी मात्रा में सेब सेब खुले में ही पड़ा रहा। लगभग चार हजार क्विंटल सेब तो खरीद के दौरान ही खराब हो गया। सितंबर अंतिम सप्ताह में राजमार्ग खुलने पर अधिकारियों ने देहरादून में बैठकर
बिना ग्रेडिंग के ही इस सेब की 14 रुपये किलो की दर से नीलामी कर दी गई। खरीददार ने भी 30 अक्तूबर तक इसमें से ‘ए’ ग्रेड का करीब 4600 क्विंटल सेब उठाकर हाथ खड़े कर दिए।
शेष बचा करीब 11,500 क्विंटल सेब उपला टकनौर क्षेत्र में लोगों के घरों-होटलों में बनाए गए गोदामों में खराब होने लगा तो प्रशासन को यह सारा सेब महज 60 हजार रुपये में नीलाम करना पड़ा। ऐसे में 30 रुपये की दर से खरीदा गया यह सेब महज पांच पैसे की दर से बिका। निगम के अधिकारी इसी से खुश हैं कि चलो अब खरीददार गोदाम खाली कर देंगे।
प्रशासन की इस नालायकी से नाराज हर्षिल के बागवान डा. नागेंद्र रावत कहते हैं, ‘‘व्यवस्थित ढंग से सेब का भंडारण होता और फल प्रसंस्करण द्वारा इससे पल्प तैयार किया जाता तो यह खरीद घाटे के बजाय फायदे का सौदा साबित हो सकती थी। सरकार के अधिकारियों ने इस बारे में लोगों से राय मशविरा तक नहीं किया।’’
जीएमवीएन के सहायक महाप्रबंधक धनंजय असवाल कहते हैं, ‘‘सेब भंडारण की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण अस्सी फीसदी से अधिक सेब गोदामों में ही सड़ गया। करीब पांच करोड़ में खरीदे गए सेब की नीलामी से 65 लाख रुपये वसूल हुए। सड़ रहे सेबों से खराब हो रहे गोदाम खाली कराने जरूरी थे। इस बार की आपदा और सेब खरीद का अनुभव भविष्य के लिए सबक है।’’