Warning: substr_count(): Empty substring in /home2/himnefg6/public_html/wp-content/plugins/ads-for-wp/output/functions.php on line 1274
धर्मशाला। कांगड़ा जिले के बुद्धिजीवियों और राजनेताओं ने धूमल सरकार की नए जिलों के गठन की कवायद को सिरे से नकार दिया है और इसे चुनावी वर्ष में मात्र लोगों को गुमराह करने वाला षड्यंत्र करार दिया है। धर्मशाला में नए जिलों के गठन के विषय पर आयोजित एक संगोष्ठी में अधिकांश वक्ताओं ने दो टूक कह दिया कि नए जिलों के गठन के प्रति आम जनता की कोई दिलचस्पी नहीं है और सरकार को नए जिले बनाने के बजाए लोगों की सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा की जरूरत पर ही अधिक ध्यान देना चाहिए।
धर्मशाला के जिला परिषद हाल में इस संगोष्ठी का आयोजन भी बड़े दिलचस्प ढंग से हुआ। एक व्यक्ति ने शहर में पोस्टर लगाकर लोगों को नए जिलों के गठन पर विचार गोष्ठी के लिए आमंत्रित किया और लोग वहां पहुंच गए। माना जा रहा है कि आयोजक नए जिलों मुद्दे के अतिरिक्त कोई राजनीतिक संदेश भी सरकार तक पहुंचाना चाहते थे। संगोष्ठी में प्रमुख रूप से उद्योग मंत्री किशन कपूर, हिमाचल लोक हित पार्टी के अध्यक्ष महेश्वर सिंह, सेवा निवृत्त प्रशासनिक अधिकारी केसी शर्मा और प्रो. एनके सिंह, वरिष्ठ कांग्रेस नेता केवल सिंह पठानिया, हिमाचल स्वाभिमान पार्टी के अध्यक्ष सुभाष शर्मा और समाचारपत्र ‘दिव्य हिमाचल’ के संपादक अनिल सोनी आदि प्रमुख थे।
संगोठी में सर्वप्रथम उद्योग मंत्री किशन कपूर ने अपने विचार रखते हुए कहा कि वे कभी भी इस बात के पक्षधर नहीं रहे कि अकेले कांगड़ा जिले का ही विभाजन किया जाए। उन्होंने कहा कि पहले भी कांगड़ा का विभाजन कर कुल्लू, लाहौल स्पीति, ऊना और हमीरपुर जिले बनाए जा चुके हैं। उन्होंने कहा कि आज हमारी योजना से ज्यादा सरकार के खर्चे हंै। एक जिले के सृजन के लिए कम से कम 420 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी और केन्द्र सरकार इस अतिरिक्त खर्च को उठाने के लिए तैयार नहीं है। ऐसे में नए जिलों का सृजन कहां तक सही है। सरकार का पक्ष रखते हुए उद्योग मंत्री ने कहा कि यह मांग लोगों की है और सरकार ने इस ओर कोई पहल नहीं की है।
हिमाचल प्रदेश लोकहित पार्टी के अध्यक्ष महेश्वर सिंह ने कहा कि चुनाव के समय नए जिलों की बात करना केवल लोगों को गुमराह करना ही है। उन्होंने कहा कि भाजपा की पिछली सरकार के समय भी कई स्थानों पर अतिरिक्त उपायुक्त बिठा दिये गए थे, लेकिन सत्ता बदलते ही जब कांगे्रस सरकार ने इस फैसले को पलट दिया तो भाजपा की ओर से किसी ने कोई विरोध नहीं जताया। दोबारा भाजपा के सत्ता में आने पर चार साल तक यह सरकार चुप्पी साधे रही। और अब जब चुनाव का समय आया तो फिर से नए जिले बनने की बात उठाई जाने लगी है। उन्होंने कहा कि नए जिले बनाने से पहले वर्तमान जिलों के पुनर्गठन की आवश्यकता है, क्योंकि कई स्थानों पर एक जिले की हद से गुजरते समय दूसरे जिले की दो तीन बार हद क्रास करनी पड़ती है। ऐसे में सबसे पहले इन्हें सही करने की आवश्यकता है। महेश्वर सिंह का कहना था कि नए जिलों के गठन के बजाए पर्यटन को बढ़ावा देना और सड़कों को ठीक करना सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए।
सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी केसी शर्मा का कहना था कि प्रदेश में नए जिलों का सृजन करने से पहले प्रशासन को और कुशल बनाने तथा निचले स्तर पर खाली पदों को भर कर इसे और सशक्त बनाए जाने की अधिक आवश्यकता है।
सेवानिवृत्त प्रशासनिक अधिकारीप्रो. एनके सिंह ने जोर देकर कहा कि आज सबसे पहली आवश्यकता प्रशासन के सारे ढांचे को पुनर्गठित कर इसे नया स्वरूप देने की है। इसके लिए एक आयोग गठित कर उपायुक्त का वर्क लोड कम करने की जरूरत है ताकि उपायुक्त के पास यह देखने के लिए पर्याप्त समय हो कि सरकार की नीतियां सही ढंग से लागू हो रही हंै या नहीं। वरिष्ठ कांगे्रस नेता केवल सिंह पठानिया ने नए जिलों के सृजन को कांगड़ा जिले के विभाजित की एक साजिश करार दिया और कहा कि सरकार अपने चार वर्ष से अधिक का समय पूरा कर चुकी है। अब उसे नए जनादेश का इंतजार करना चाहिए। अगर नए जिलों के गठन की जरूरत हो तो चुनाव के बाद इसके लिए आयोग गठित कर यह काम हाथ में लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि नए जिलों की मांग केवल सरकार द्वारा प्रायोजित है।
हिमाचल प्रदेश स्वाभिमान पार्टी के अध्यक्ष सुभाष शर्मा ने कहा कि नए जिले जनता की जरूरत नहीं है, बल्कि यह केवल राजनीतिक चाल है। आज लोगों को जरूरत शिक्षा, सड़क और स्वास्थ्य की है। नए जिले केवल राजनेताओं की मंशा की ही पूर्ति कर सकते हैं।
स्थानीय समाचारपत्र ‘दिव्य हिमाचल’ के संपादक अनिल सोनी ने चर्चा को समाप्त करते हुए कहा कि राजनेता लोगों की जरूरत का ध्यान रखने के बजाए अपना ही स्वार्थ साधते हैं। ऐसे में आज आवश्यकता इस बात की है कि लोग अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हों। आज आवश्यकता है कि सारे प्रशासनिक सुधार पटवार और पंचायत स्तर से शुरू हों। इस समय जिलों के सृजन की बात असामयिक और सियासत से भरी ही लगती है और इसके तौर तरीके भी सही नहीं है । इस समय इसे तर्क संगत नहीं कहा जा सकता।