अल्मोड़ा। उत्तराखंड में गोवंशीय पशुओं की खरीद-फरोख्त के लिए प्रशासन की देखरेख में लगने वाले मेले विवादों में
अल्मोड़ा के मरचूला में वर्ष 2014 में 5700 से भी अधिक गोवंशीय पशुओं की खरीद-फरोख्त हुई थी। इसमें अधिकांश क्रेता ऊधमसिंह नगर की तहसील गदरपुर, बाजपुर, काशीपुर, जसपुर तथा उत्तर प्रदेश के रामपुर, मुरादाबाद के थे। स्थलीय जांच में इनमें से मात्र तीन सौ मवेशी ही पशुपालकों के पास मिले। प्रशासन ने यह जांच समाजसेवी जगदीश प्रसाद गोयल द्वारा आरटीआई के तहत मांगी गई सूचना पर की थी। जिलाधिकारी डॉ. पंकज पाण्डेय ने भी माना है कि मेले में बेचे गए हजारों मवेशी स्थलीय जांच में मौके पर नहीं पाए गए।
प्रशासन की जांच रिपोर्ट के अनुसार अकेले जसपुर में खरीदकर लाए गए 657 मवेशियों में से मौके पर मात्र 21 ही मिले। बाजपुर में 376 में से अभी तक 216 मवेशी गायब हैं, काशीपुर में 700 से अधिक मवेशियों में से 34 ही सामने दिखे। कई गांवों में दो-तीन नामों से की गई खरीद के समस्त पशु गायब हैं। गदरपुर में भी 400 में से मौके पर 16 मवेशी ही दिखे।
रामनगर क्षेत्र में खरीदे गए नब्बे फीसदी पशु मौके पर नहीं हैं। रामपुर, मुरादाबाद की स्वार व ठाकुरद्वारा तहसील का सत्यापन ही नहीं हो पाया है, जबकि मेला बीते छह माह से ज्यादा हो गए हैं और सत्यापन एक माह के भीतर करना अनिवार्य है।
उत्तराखंड राज्य गोवंश संरक्षण नियमावली के अनुसार पशुमेले में बाहरी राज्यों के लोगों को मवेशी नहीं बेचे जा सकते हैं। लेकिन इस मेले में प्रशासन ने इन नियमों की कोई परवाह नहीं की। इसके अतिरिक्त जिनके पास गोवंश नहीं मिले हैं, उनके विरुद्ध अभी तक कार्रवाई भी नहीं की गई है, जबकि मवेशी खरीदने के बाद छह माह तक इन्हें नहीं बेचने का करार होता है।
यही नहीं कुछ तस्करों ने तो मवेशी खरीदने के बाद गोवंश के टैग नंबर सहित कानों को काट कर वहीं फेंक दिया था। इसकी रिपोर्ट भी दर्ज हुई, लेकिन प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की।
एनिमल वेलफेयर बोर्ड ऑफ इंडिया, चेन्नई के नॉर्दर्न रीजन सदस्य जयराज ने पहले ही तस्करी की आशंका जताई थी और प्रशासन से मेले को निरस्त करने की मांग की थी। लेकिन उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया। इस संस्था की रिपोर्ट के आधार पर ही राज्य सरकार ने लगभग छह वर्ष पूर्व नैनीताल के मोहान पशु मेले को निरस्त कर दिया था।
पशुमेले में नियमानुसार जिला प्रशासन को क्रय-विक्रय से पूर्व पशु क्रेता के फोटो पहचान पत्र तथा भू-स्वामी (किसान जोत बही) की जांच करनी होती है। यह भी जांच होती है कि क्रेता इससे पूर्व गोवंश की हत्या/तस्करी में लिप्त तो नहीं था? लेकिन अब यहां ऐसा कुछ भी नहीं किया जा रहा।