शिमला। मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह चुनाव से ठीक पूर्व अकेले पड़ते जा रहे हैं। ‘कोटखाई कांड’ ने रही सही कसर भी पूरी कर दी। विपक्ष के हमलों का जवाब देने के लिए कांग्रेसी नेता सहयोग में आगे नहीं आ रहे हैं, बल्कि कुछ तो जले पर नमक छिड़क रहे हैं। अभी तक मुख्यमंत्री के साथ साये की तरह रहने वाले कुछ नेता भी छिटक कर अपने निर्वाचन क्षेत्रों व्यस्त हो गए हैं, जिसे लेकर राजनीतिक गलियारों में खूब चर्चाएं हैं। मुख्यमंत्री को अपनी बात कहने के लिए अखबारों में अपील छपवानी पड़ रही है।
प्रदेश में कांग्रेस सरकार और संगठन काफी समय से आमने- सामने हैं। इसी का कमाल है कि वरिष्ठ कांग्रेस नेता मेजर विजय सिंह मनकोटिया लगातार मुख्यमंत्री पर आरोपों की भरमार करते हुए राज्य में राष्ट्रपति शासन की मांग कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अभी तक भी पार्टी से नहीं निकाला जा सका है।
‘गुड़िया प्रकरण’ में जनता के बढ़ते आक्रोष के लिए पार्टी प्रदेशाध्यक्ष सुखविंद्र सुक्खू सीधे वीरभद्र सिंह को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। मुख्यमंत्री खेमें में गिने जाने वाले सीपीएस नीरज भारती ने भी गत दिवस ‘गुड़िया प्रकरण’ में मुख्यमंत्री के स्टैंड पर असंतोष व्यक्त किया। नीरज भारती ने सोशल मीडिया में टिप्पणी की कि, “मैं दुखी हूं और उदास भी, क्योंकि गुड़िया गैंगरेप एंड मर्डर केस में मुख्यमंत्री और अधिकारियों ने जो स्टैंड रखा, उससे मैं बिल्कुल भी सहमत नहीं हूं।”
कोटखाई में ‘गुड़िया रेप एंड मर्डर केस’ में जनता का आंदोलन एकाएक राजनीतक रूप लेते हुए वीरभद्र विरोध में बदलने लगा है। वामपंथियों, विशेषकर सीपीआई(एम) और उससे जुड़े संगठन इस मामले में सबसे आगे हैं। कोटखाई से लेकर ठियोग, शिमला, सोलन तक वामपंथियों ने बड़े धरना प्रदर्शन आयोजित किये और यह क्रम लगातार जारी है। भाजपा ने भी धरना- प्रदर्शनों में पूरी ताकत झोंक दी है।
भाजपा की तरह इस बार वामपंथियों का मुख्य निशाना भी वीरभद्र सिंह ही है और इसके कुछ ठोस कारण भी गिनाए जा सकते हैं। वीरभद्र सरकार ने अपने इस कार्यकाल में वामपंथियों के नेतृत्व में चलने वाले आंदोलनों को कुचलने में सारी हदें लांघ दी थीं। शोंगटोंग परियोजना के आंदोलनरत मजदूरों पर नृशंसतापूर्वक हमले किये गए। शिमला में सीपीआई(एम) के कार्यालय तक में पुलिस ने धावा बोला और पार्टी कार्यकर्ताओं को निर्दयता से पीटा।
यही नहीं, सीपीआई(एम) के पूर्व राज्य सचिव राकेश सिंघा गत वर्ष जुलाई माह में शिमला में आमरण अनशन पर बैठे थे। अनशन के आठवें दिन सिंघा को पुलिस द्वारा उठा कर साधुपुल के पास वीरान जंगल में फेंक दिया गया। पार्टी नेताओं ने बड़ी मुश्किल से उन्हें ढूंढ़ा और बेहोशी हालत में उन्हें सुरक्षित आईजीएमसी अस्पताल पहुंचाया। ऐसी ही दर्जनों घटनाएं हैं, जिस कारण वामपंथियों में वीरभद्र सिंह के प्रति कड़ा आक्रोष है। हालांकि सभी जानते हैं कि इस आक्रोष का विधानसभा चुनावों में सबसे अधिक लाभ भाजपा को ही मिलेगा।
कांग्रेस सरकार की इस समय बड़ी समस्या यह है कि सीबीआई ‘गुड़िया रेप एंड मर्डर केस’ को लेने में देर कर रही है, जिस कारण जनता का आंदोलन लंबा खिंचता जा रहा है। कुछ कांग्रेसी दबी जुबां में इसे भाजपा की शरारत कह रहे हैं। आंदोलन जितना लंबा खिंचेगा, उतना ही यह विधानसभा चुनाव को प्रभावित करेगा। कांग्रेस चाहती है कि सीबीआई जल्दी इस केस को अपने हाथ में ले तो मामला कुछ शांत हो, लेकिन वह पिछले एक सप्ताह से कोई निर्णय ही नहीं ले रही।