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उत्तरकाशी। भीषण ठंड, चार से पांच फुट तक की बर्फ और मानव जीवन के लिए एकदम विपरीत हालात। गंगोत्री घाटी की शीतकाल में तस्वीर कुछ ऐसी ही रहती है। तीर्थाटन से लेकर पर्यटन सहित हर तरह की मानवीय गतिविधियों पर विराम लग जाता है, लेकिन फिर भी गुफाओं में रहकर कुछ इंसानी साए मौजूद रहते हैं। एक बार फिर छह माह की इस तप और साधना की तैयारी शुरू हो चुकी है।
गंगोत्री धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद हो चुके हैं। तीर्थ पुरोहित गंगा की भोगमूर्ति के साथ नीचे मुखबा गांव की ओर लौट गए हैं। इसके साथ ही गंगोत्री में रहने वाले व्यापारी, सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं के कर्मचारी सभी छह माह के लिए निचले इलाकों का रुख कर गए हैं। पहाडिय़ों पर बर्फ की चादर बिछ गई है। कुछ ही दिनों में यह चादर पूरे गंगोत्री धाम में फैल जाएगी। इससे मानव जीवन के लिए एकदम विपरीत हालात बन जाएंगे। बावजूद इसके गुफाओं में सनातन हिंदू संस्कृति की लौ जगती रहेगी।
संत और साधु कठिन तप की परंपरा को आज भी जीवित रखे हुए हैं। सदियों से चली आ रही इस परंपरा का हिस्सा कई बड़े संत हुए हैं। स्वामी वेदांतानंद, स्वामी परमागिरी, गंगेश्वरानंद, बाबा सूर्यानंद, रामेश्वरानंद, वेद प्रकाश, रघुवीर भारती सहित करीब 35 संत हर साल की तरह इस बार भी साधना में लीन रहेंगे। इनमें से कुछ संतों को तप करते हुए 15 से 20 साल भी हो गए हैं। बातचीत करने पर संत पूरी तरह निर्विकार और सर्दी और गर्मी की सुविधा की चाह से दूर नजर आते हैं।
गंगोत्री घाटी में गुफाओं में या फिर कुटिया बनाकर कई नामचीन और विद्वान संत भी रह चुके हैं, जिनमें महर्षि महेश योगी, आचार्य श्रीराम शर्मा, स्वामी शिवानंद, स्वामी सुंदरानंद सहित अनेक नाम शामिल हैं। स्वामी रामदेव और बालकृष्ण ने भी लंबा समय इस क्षेत्र में साधना करते हुए बिताया है।