देहरादून। शिक्षा विभाग में न तो पुराने और न ही नव नियुक्त शिक्षक पहाड़ों में जाने को तैयार हैं। मास्टरजी प्रमोशन छोड़ रहे हैं, लेकिन सुगम स्कूल छोडऩे को कतई तैयार नहीं। स्थिति यह है कि प्रदेश भर में साढ़े पांच सौ अध्यापकों को पदोन्नत कर दूरदराज के स्कूलों में भेजा गया, लेकिन मुश्किल से 50 प्रतिशत भी नए तैनाती स्थल पर नहीं पहुंचे। यही हाल नव नियुक्त शिक्षकों का भी है, जो पदोन्नति संशोधन के लिए निदेशालय के चक्कर लगा रहे हैं।
Advertisement
शिक्षा विभाग पहाड़ के दुर्गम स्कूलों में शिक्षकों को चढ़ाने के लिए पिछले कुछ वर्षों में लगातार प्रमोशन लिस्ट जारी करता रहा है। राजधानी को ही लें तो यहां पिछले कुछ समय में कई बार पदोन्नति सूची जारी की जा चुकी है। पूर्व में 18 जुलाई, 2009 को प्राथमिक विद्यालय के सहायक अध्यापकों से उच्च प्राथमिक स्कूलों के लिए 107 शिक्षकों की पदोन्नति की गई। इन शिक्षकों को शहर और आस-पास के गांवों के स्कूलों से पदोन्नत कर चकराता और कालसी के स्कूलों में भेजा गया था, लेकिन अधिकतर शिक्षकों ने दुर्गम स्कूलों में जाने के बजाए पदोन्नति छोड़ दी। यही हाल एलटी शिक्षकों और चयनित प्रवक्ताओं का भी रहा।
अपर जिला शिक्षा अधिकारी (बेसिक)राजेंद्र सिह रावत बताते हैं कि शिक्षा विभाग वर्ष 2011 में पांच बार पदोन्नति सूची जारी कर चुका है। इसमें लगभग चार सौ शिक्षकों का प्रमोशन कर उन्हें दुर्गम स्कूलों में भेजा गया, लेकिन मुश्किल से 20 से 30 शिक्षक ही इन स्कूलों में पहुंचे। अन्य शिक्षकों ने प्रमोशन छोड़ दिया।
उप शिक्षा निदेशक वीरेंद्र सिह रावत कहते हैं कि सभी शिक्षक सुगम स्कूल चाहते हैं। वर्ष 2010-11 में गढ़वाल और कुमाऊं दोनों मंडलों में बेसिक हेड एवं जूनियर सहायक से 550 शिक्षकों को पदोन्नत/समायोजन कर प्रदेश के विभिन्न जनपदों के दुर्गम स्कूलों में भेजा गया था, लेकिन 50 प्रतिशत शिक्षकों ने प्रमोशन को ठुकरा दिया।
शिक्षकों की इस मनोवृत्ति से चिंतित शिक्षा निदेशक चंद्र सिंह ग्वाल कहते हैं कि वास्तव में यह बड़ी समस्या है कि प्रमोशन के बाद भी शिक्षक दुर्गम स्कूलों में नहीं जा रहे। उन्होंने कहा कि अब ऐसे शिक्षकों को तीन साल तक फिर से प्रमोशन का कोई मौका न देकर अन्य शिक्षकों को पदोन्नत किया जाएगा।