चिलचिलाती धूप, इंतज़ार में बैठा जन समूह, किसी करिश्माई चेहरे को देखने के लिए मंच की ओर टकटकी लगाए बैठा है। अगली पंक्तियों में खासतौर पर विराजमान विशिष्ठ प्रशिक्षित भक्त जैसा अक्सर बाबाओं, नेताओं की जनसभाओं, पंडालों में होता है, सुप्रबंधित। जिन्हें कब चिल्लाना है, कब जय जयकार बुलानी है, कब सीटी बजानी है, कब तालियां बजाने के लिए जन को उकसाना है, अपना गला साफ कर रहे हैं। किसी त्रुटि की कोई गुंजाइश नहीं।
लंबे इंतज़ार के बाद एक चेहरा मंच पर नमूदार होता है और मंच के सामने से सर जी…सर जी का प्रलाप शुरू हो जाता है। मामूली औपचारिकताओं के बाद सर जी माइक संभालते हैं। हाथ उठाते हुए आह्वान की मुद्रा में एक सवाल जन समूह की ओर उछालते हैं – फेंकूं या न फेंकूं?
जवाब में- फेंकिए, फेंकिए की ध्वनि से पंडाल गूंज उठता है। तुरंत दूसरा सवाल हुआ – लंबी फेंकूं या छोटी। जवाब आया – लंबी, लंबी…। ओवर द विकेट या राउंड द विकेट? यहां भक्त कुछ असमंजस में आ गए, क्योंकि दूसरे छोर पर एकाध लेफ्ट हैंडर भी ज़रूर होगा। इस सवाल का जवाब ज़रा सोच कर आया – दोनों तरफ से फेंकिए।
फील्ड के एक कोने में हाटी फील्डर भी तैनात थे। उन्हें उम्मीद थी कि साहब एकाध ऐसी फेंकेंगे कि जनजातीय का कैच सीधा उनके हाथों में आएगा। ढोल-नगाड़ों और रणसिंघा के साथ एक चीयर लीडर्स का समूह भी अपने ध्वनि यंत्र दबाए–छुपाए बैठा था, जो कैच लेते ही मंगल ध्वनि का नाद करने के लिए तत्पर था।
खेल शुरू हुआ। गरीब कल्याण योजनाओं के लाभार्थियों के सर पर 29 मिनट में करोड़ों का तमाशा करके साहब ने इधर-उधर, जानें किधर-किधर की उड़ाई, न पुराने वायदों की चर्चा, न महंगाई का ज़िक्र। कॉफी हाउस का ज़िक्र करने का अवसर भी इस बार साहब को नहीं मिल पाया। ये दायित्व सिरमौरियों के मामा जी निभा गए।
ठीक 29 मिनट के बाद सर जी की मेहरबानियां उगल रहीं टीवी स्क्रीनों पर सन्नाटा छा गया। माटी की नाटी के लिए थिरकने को आतुर पांवों को जैसे लकवा मार गया। स्क्रीनों पर आंख गड़ाए समूह ऐसे मुंह बनाकर तितर-बितर हो गए जैसे मंदिर से प्रसाद न मिलने के गम में लौट आते हैं।
सर जी ने तो शॉल-टोपी बटोरी, झोले में भरी और उड़ चले…।
लोगों में खुसर-फुसर शुरू हुई ‘क्या दिया, क्या दिया‘ तो दूसरा बोला – दिया न! ट्रक भर झंडे जो अभी लटक रहे हैं, कुछ दिनों में झूलने लगेंगे और फिर स्मार्ट सिटी की हरी–भरी पहाड़ियों को रंगीन बनायेंगे। जन को मैदान तक ढोने वाला पथ परिवहन निगम अब बरसों तक इस ढुलाई के कर्ज़ का बोझ ढोएगा। इतना काफी नहीं है, और भी कुछ चाहिए था?
संदेह नहीं कि शो हिट रहा। भले विपक्षी टीम चाहे कुछ भी अनाप-शनाप कहती फिरे।
– लेखक जीयानंद शर्मा, सामाजिक कार्यकर्ता एवं राजनीतिक मामलों के प्रखर टिप्पणीकार हैं। प्रस्तुत व्यंग्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया शिमला दौरे को लेकर है।