भारत ही नहीं बल्कि एशिया भर में 90 प्रतिशत तक लुप्त हो चुकी देसी यानि एपिस रियोना प्रजाति की मधुमक्खियां अब पहाड़ों में महफूज रह सकेंगी। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिला में बागवानी अनुसंधान केंद्र सेऊबाग ने एक ऐसा छत्ता विकसित किया है, जिसमें ये मधुमक्खियां न केवल सुरक्षित रह सकेंगी बल्कि उनके शहद उत्पादन में भी तीन से चार गुणा तक इजाफा होगा।
अनुसंधान केन्द्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. जीपी शर्मा इस छत्ते पर पिछले छह वर्षों से काम कर रहे थे और पिछले तीन वर्षों से इस पर परीक्षण चल रहा था। डा. जीपी शर्मा ने बताया कि प्रयोग सफल रहा है। अब आने वाले समय में पहाड़ों में फलों, विशेषकर सेब के परागण की समस्या का काफी हद तक समाधान हो सकेगा और शहद का उत्पादन भी तीन-चार गुणा बढ़ सकेगा।
डॉ. जीपी शर्मा ने पारंपरिक और आधुनिक शैली के मिश्रण से मधुमक्खियों के इस छत्ते का निर्माण किया है। इसमें पत्थर, लकड़ी, गोबर और घास का इस्तेमाल किया गया है। इस कारण छत्ते के अंदर का तापमान गर्मी और सर्दी में एक समान रहता है, जो देसी मधुमक्खियों के जिंदा रहने के लिए आवश्यक होता है। लोकल मधुमक्खियों के लिये बना यह छत्ता बागवान मात्र 500 रुपये में तैयार कर सकते हैं।
डा. जीपी शर्मा ने बताया कि एपीस रियोना प्रजाती की यह मधुमक्खियां एशिया के पहाड़ों में सिर्फ 10 प्रतिशत ही रह गई हंै। पिछले कुछ वर्षों में यहां सेब के उत्पादन में लगातार आ रही गिरावट के लिए भी इसे एक बड़ा कारण माना जा रहा है। उन्होंने कहा कि अनुसंधान में तैयार किए गए इस छत्ते की सहायता से इस प्रजाति की मधुमक्खियों की संख्या बढ़ सकेगी। इसके लिए बागबानों को भी प्रशिक्षित किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि अब तक पांच सौ से अधिक किसानों बागवानों को इस तकनीक का प्रशिक्षण दिया जा चुका है।
देसी मक्खियों की संख्या में आई भारी कमी के कारण बागवानों को फ्लावरिंग के समय पोलिनेशन के लिए इटालियन मधुमक्खियों के बक्से किराये पर लेने पड़ रहे हैं। यह प्रक्रिया काफी महंगी होने के कारण लघु एवं मघ्यम दर्जे के बागवान इसे नहीं अपना पा रहे हैं और अंतत: इसका दुष्प्रभाव फलों के उत्पादन पर पड़ रहा है। माना जा रहा है कि अब बागवान लोकल मधुमक्खियों को कम दामों पर अपने ही घरों व आंगन में पालन कर परागण की समस्या से निजात पा सकेंगे।