माओवादियों के शीर्ष नेता कोटेश्वर राव यानी किशनजी के करीमनगर स्थित उनके पैतृक स्थल पेदापल्ली में रविवार को हुए अंतिम संस्कार में बड़ी संख्या में माओवादी समर्थकों सहित विभिन्न राजनीतिक दलों के लोगों ने भी बाग लिया। किशनजी के छोटे भाई अंजनेयूलू ने अंतिम क्रियाकर्मों को अंजाम दिया। किशनजी के अंतिम संस्कार के लिए एक जन सैलाब सा उमड़ पड़ा। शायद इसलिए भी क्योंकि किशनजी ने वर्ष 1969 से ही अलग तेलंगाना राज्य के लिए छेड़े गए आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभायी थी। यही वजह है कि भूमिगत आंदोलन से जुड़े होने के बावजूद राजनीतिक दलों के नेता उन्हें आदर से देखा करते थे।
उनके अंतिम संस्कार में कांग्रेस के सांसद और तेलगूदेशम पार्टी के विधायक भी शामिल थे। इसके अलावा तेलंगाना राष्ट्र समिति के विधानसभा में नेता कोप्पुला ईश्वर, ई. राजेंदर और एमएलसी लक्ष्मण राव भी मौजूद थे। बड़ी संख्या में राजनीतिक दलों के नेताओं की मौजूदगी ने सबको हैरान कर दिया। इससे कई सवाल भी खड़े हो गए। सबसे बड़ा सवाल है कि क्या माओवादियों की पैठ राजनीतिक दलों में भी हो चुकी है?
जानकार मानते हैं कि यह कोई नयी बात नहीं है, क्योंकि माओवादियों के आधार वाले इलाकों में चुनाव जीतने के लिए राजनीतिक दलों के लोगों को माओवादियों की मदद लेनी पड़ती है।
जहां तक कांग्रेस, तेलगूदेशम पार्टी और तेलंगाना राष्ट्र समिति का सवाल है तो जानकार मानते हैं कि किशनजी के अंतिम संस्कार में हिस्सा लेने वालों पर ये दल इसलिए भी कार्रवाई नहीं कर सकते हैं, क्योंकि पूरे तेलंगाना क्षेत्र में कोटेश्वर राव को तेलंगाना पृथक राज्य के आंदोलन का एक बड़ा नेता माना जाता रहा है। राजनीतिक दल के नेताओं की दुविधा यह है कि अगर वह अंतिम संस्कार में नहीं जाते तो उन्हें लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ता, जो उनके राजनीतिक भविष्य के लिए अच्छा नहीं होता।
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने अपने शीर्ष नेता किशनजी की मौत के विरोध में चार और पांच दिसंबर को भारत बंद का आह्वान किया है। इसके अलावा संगठन ने 29 नवंबर से पांच दिसंबर तक विरोध सप्ताह मनाने का फैसला लिया है।