एकाएक सराज का नाम चमक उठा है। जब ये अचानक वाली चमक भी नहीं थी तब मेरे मन में आया था कि एक किताब लिखूंगा कभी….‘द स्टोरी ऑफ थ्री सराज’। टाइटल भी अंग्रेजी, क्योंकि वो हिंदी पर भारी है। खैर अब ये एक मजाक जैसा भी लग सकता है।
शायद कुछ लोगों को पता न हो, प्रदेश में तीन सिराज हैं- कुल्लू का आऊटर सिराज (आनी-निरमंड), इनर सिराज (बंजार, कुल्लू, मनाली) और मंडी का सिराज (थुनाग-जंजैहली)। बोली में मिलता जुलता फर्क है, लेकिन समझ पूरी है। रहन सहन वेशभूषा भी तकरीबन एक जैसी।
आऊटर सिराज कोटगढ़ और कुमारसेन क्षेत्र से मेल जोल के कारण रेजटा, ढाटू और सूथन, सलूका (सदरी) पहनता है, इनर सिराज में महिलाओं के पाटू जैसे पहनावे आज भी जिंदा हैं, जोकि आऊटर सिराज में नहीं पहना जाता। मंडी सराज में न तो पाटु पहना जाता है (कुल्लू के साथ लगते कुछेक इलाकों को छोड़कर) न ही रेजटा। इन तीनों सराज में महिलाओं के पहनावे को लेकर एक बात सबसे कॉमन हैं- महिलाएं सिर पर ढाटू पहनती हैं। इससे भी कॉमन है- सीधा, सहज, सरल स्वभाव, नाटी, गीत संगीत, सिडू (सिगड़ी, सिडा), देव परंपरा….फेहरिस्त कुछ ज्यादा लंबी है।
अब अगली बात पर आते हैं। मैंने कई बार सिराज के लोगों से मजाक किया है कि इस सिराज को इनर और आऊटर सिराज का हिस्सा होना चाहिए था, आखिर ये मंडी में क्यूं? हालांकि इसे अभी भी मजाक के तौर पर ही लिया जाना चाहिए…..लेकिन यहां एक गंभीर बात है कि अभी तक मंडी के लोअर हिल्स सिराज को मजाक में लेते रहे हैं। सीधे सादे लोगों का जो मजाक होता है बिल्कुल वैसा ही। फिर भी सराजियों ने सबको चारों खाने चित्त कर दिया है। ऊपरले और निचले पहाड़ में एक दूसरे के प्रति जो मानसिकता है, वही मानसिकता मंडी में सिराज के लिए है। हालांकि इस बात को पुरजोर तरीके से नकारने के लिए आप स्वतंत्र हैं, लेकिन सच्चाई बदलना मुश्किल ही है। हंसी इस बात पर आती है कि मंडी के जो सूबे मंडी मंडी चिल्ला रहे थे असल में अभी तक सिराज उनके लिए कुछ था ही नहीं। सिराज का दुर्गम होना और विकास की दौड़ में मामुली पिछड़न इस मानसिकता का आधार था। मंडी के कथित मिनी पंजाब के कई लोगों के होंठों पर मैंने सिराज के लिए मजाकिया मुस्कान देखी है जो अब अवसरवादिता में बदल गई है। लाभ लेने के लिए वो तलवाचाट में भी बदलने को मजबूर है। सिराज हलके को हल्के में लेना भारी पड़ गया है। अपना उल्लू सीधा करने ले लिए अब कई गिद्ध उसी हलके के नुमाइंदे के आगे चोंच रगड़ते नजर आएंगे जहां की जनता को वो पैर की धूल जैसा कुछ समझते रहे हैं। क्षेत्रवाद को किसी डिब्बे में पैक कर लात मारने की जरूरत है। मुख्यमंत्री शायद यही चाल चलेंगे। ऐसी उम्मीद की जा सकती है।