देश में शारदीय नवरात्रों के दौरान एक ओर जहां कन्या पूजन हो रहा था, वहीं राष्ट्रीय
पहला मामला दिल्ली के नांगलोई इलाके का है, जहां दो वहशी दरिदों ने ढाई साल की बच्ची को अगवा कर उसे अपनी हवस का शिकार बनाया। यह बच्ची परिजनों के साथ रामलीला देखने गई हुई थी। दूसरा मामला आनंद बिहार में हुआ, जहां तीन लोगों ने पांच साल की बच्ची के साथ दुश्कर्म किया। इसी दौरान गुड़गांव में भी एक युवती से गैंगरेप का मामला सामने आया । पिछले कुछ वर्षों से इस तरह की बढ़ती घटनाओं ने राजधानी दिल्ली को महिलाओं व बच्चियों के काफी असुरक्षित बना दिया है। सरकार और पुलिस प्रशासन एक- दूसरे पर दोष मढ़ने में लगे हैं। समस्या का कोई भी ठोस समाधान नहीं मिल पा रहा है।
देश में इस समय बलात्कार के लगभग 40,000 मामले अदालतों में लम्बित पड़े हैं। आंकड़े बताते हैं कि 2011 में नाबालिगों से दुश्कर्म के 24206 मामले हुए। इनमें 14 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों के साथ 2582 और 14 से 18 वर्ष की उम्र की बच्चियों के साथ बलात्कार के 4646 मामले शामिल हैं। बलात्कार के 22549 मामलों में अभियुक्त परिचित ही निकले, जबकि 7835 मामलों में पड़ोसी, 1560 मामलों रिश्तेदार, 267 मामलों में परिवार के नजदीकी सदस्य ही अभियुक्त थे। इस तरह 94 प्रतिशत से ज्यादा मामलों परिचितों ने ही दुश्कर्म किया।
देखने में आया है कि वर्ष 2012 से लेकर वर्ष 2015 तक अबोध बच्चियां से दुराचार के मामलों में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। विडम्बना देखिए कि वर्ष 2013 में अप्रैल माह में एंटी रेप बिल पर मोहर लगी थी, लेकिन बलात्कार की घटनाओं में कोई कमी नहीं आई। समाजशास्त्री भी पता यह लगाने में नाकाम सिद्ध हो रहे हैं कि समाज में इस तरह की विकृत मानसिकता क्यों बढ़ रही है। क्या यह नैतिक मूल्यों के पतन का परिणाम है या फिर समाज में कोई भयानक मानसिक रोग फैलता जा रहा है? कुछ भी हो समस्या के समाधान के लिए तुरंत ठोस पग उठाए जाने की जरूरत है।
-लेखक स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
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