समीक्षा हमेशा कठिन रहती है। खासकर तब जब आपको गुण और दोष, प्राप्तियों और नाकामियों, दोनों का ही जिक्र करना हो। ये आलोचना से कहीं ज्यादा दुष्कर काम है। आलोचना में आपको सिर्फ मीन मेख निकालनी हो... Read more
समीक्षा हमेशा कठिन रहती है। खासकर तब जब आपको गुण और दोष, प्राप्तियों और नाकामियों, दोनों का ही जिक्र करना हो। ये आलोचना से कहीं ज्यादा दुष्कर काम है। आलोचना में आपको सिर्फ मीन मेख निकालनी हो... Read more
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