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गरीब देश के अमीर भगवान

लखनऊ। आज़ादी के बाद पहले प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने उद्योगों को आधुनिक मन्दिर कहा था, लेकिन आज छह

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दशक बीतने के बाद लगता है कि मन्दिर आधुनिक उद्योग बन चुके हैं, क्योंकि इन मन्दिरों में आने वाला चढ़ावा भारत के बजट के कुल योजना व्यय के बराबर है। अकेले 10 सबसे ज्यादा धनी मन्दिरों की सम्पत्ति देश के मध्यम दर्जे के 500 उद्योगपतियों से ज्यादा है। केवल सोने की बात की जाये तो 100 प्रमुख मन्दिरों के पास करीब 3600 अरब रुपये का सोना पड़ा है। शायद इतना सोना रिज़र्व बैंक ऑफ इण्डिया के पास भी न हो। मन्दिरों के इस फलते-फूलते व्यापार पर मन्दी का भी कोई असर नहीं पड़ता है! उल्टा आज जब भारतीय अर्थव्यस्था संकट के दलदल में फंसती जा रही है तो मन्दिरों के सालाना चढ़ावे की रक़म लगातार बढ़ती जा रही है। ज़ाहिरा तौर पर इसके पीछे मीडिया और प्रचार तन्त्र का भी योगदान है जो दूर-दराज़ तक से ‘श्रद्धालुओं’ को खींच लाने के लिए विशेष यात्रा पैकेज देते रहते हैं। जहां देश की 80 फीसदी जनता को शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, पानी जैसी बुनियादी सुविधाएं भी मयस्सर नहीं हैं वहीं मन्दिरों के ट्रस्ट और बाबाओं की कम्पनियां अकूत सम्पत्ति पर कुण्डली मारे बैठी हैं। सिर्फ कुछ प्रमुख मन्दिरों की कमाई देखें तो इस ग़रीब देश के अमीर भगवानों की लीला का खुलासा हो जायेगा।

तिरुपति बालाजी- भारत के अमीर मन्दिरों की लिस्ट में तिरुपति बालाजी नम्बर एक पर है। इस मन्दिर का ख़ज़ाना पुराने ज़माने के राजा-महराजाओं को भी मात देने वाला है, क्योंकि बालाजी के ख़ज़ाने में आठ टन तो सिर्फ आभूषण हैं! अलग-अलग बैंकों में मन्दिर का 300 किलो सोना जमा है और मन्दिर के पास 1000 करोड़ रुपये के फिक्स्ड डिपोज़िट हैं। एक अनुमान के मुताबिक़ तिरुपति बालाजी मन्दिर में हर दिन लगभग 70 हज़ार श्रद्धालु आते हैं जिस कारण हर महीने मन्दिर को सिर्फ चढ़ावे से ही नौ करोड़ रुपये से भी ज्यादा की आमदनी होती है और इसकी सालाना आय क़रीब 650 करोड़ है। इसलिए बालाजी दुनिया के सबसे दौलतमन्द भगवान कहे जाते हैं। जनता के दुख-दर्द दूर कराने वाले भगवान बालाजी की सम्पत्ति की रक्षा के लिए 52 हजार करोड़ रुपये का बीमा कराया गया है। इसके अलावा बालाजी के विशेष भक्तों की भी कमी नहीं हैं जो समय-समय पर बालाजी को मूल्यवान चढ़ावे अर्पण करते रहते हैं। इन्हीं भक्तों की सूची में ग़ैरक़ानूनी खनन के सबसे बड़े सरगना रेड्डी बन्धु भी हैं, जिन्होंने खनन कारोबार के 4000 करोड़ रुपये के मुनाफे में से 45 करोड़ रुपये का हीरों से जड़ा मुकुट चढ़ाया ताकि उनके काले धन्धों पर भगवान की कृपा बनी रहे।

वैष्णो देवी मन्दिरः तिरुपति बालाजी के बाद देश में सबसे ज्यादा लोग वैष्णो देवी के मन्दिर में आते हैं। 500 करोड़ रुपये की सालाना आय के साथ वैष्णो देवी मन्दिर भी देश के अमीर मन्दिरों में शामिल है। मन्दिर के सीईओ आर.के. गोयल के अनुसार हर गुज़रते दिन के साथ मन्दिर की आय बढ़ती जा रही है।

साईं बाबा का मन्दिरः शिरडी स्थित साईं बाबा का मन्दिर महाराष्ट्र के सबसे अमीर मन्दिरों में से एक है। सरकारी जानकारी के मुताबिक़ इस प्रसिद्ध मन्दिर के पास 32 करोड़ रुपये के आभूषण हैं और ट्रस्ट के पास 450 करोड़ रुपये की सम्पत्ति है। पिछले कुछ साल में साईं बाबा की बढ़ती लोकप्रियता के कारण इसकी दैनिक आय 60 लाख रुपये से ऊपर है और सालाना आय 210 करोड़ रुपये को पार कर चुकी है।

पद्मनाथ मन्दिरः पिछले साल तिरुवनन्तपुरम के पद्मनाथ मन्दिर के गर्भगृहों से मिली बेशुमार दौलत के बाद यह बालाजी मन्दिर को पीछे छोड़ते हुए देश का सबसे अमीर मन्दिर बन गया है। गुप्त गर्भगृहों में मिला ख़ज़ाना खरबों रुपये का है, जिसमें सिर्फ सोने की मूर्तियों, हीरे-जवाहरत, आभूषण और सोने-चाँदी के सिक्कों का मूल्य ही पाँच लाख करोड़ रुपये है। अभी तक मन्दिर के दूसरे तहखाने खुलने बाकी हैं, जिनसे अभी और बेशुमार दौलत निकल सकती है।

मन्दिरों में आने वाले चढ़ावों से लेकर मन्दिरों के ट्रस्टों और महन्तों की सम्पत्ति स्पष्ट कर देती है कि ये मन्दिर भारी मुनाफा कमाने वाले किसी उद्योग से कम नहीं हैं। वैसे तो धर्म हमेशा से ही शासक वर्ग के हाथ में एक महत्वपूर्ण औज़ार रहा है, लेकिन पूंजीवाद ने धर्म का न सिर्फ उपयोग किया बल्कि उसे एक पूंजीवादी उपक्रम बना दिया है। पूंजीवादी धर्म आज सिर्फ जनता की चेतना को कुन्द करने का ही काम नहीं करता है, बल्कि भारी मुनाफे का धन्धा बन गया है। मज़े की बात है कि हर पूंजीवादी उद्योग की तरह धर्म के धन्धे में भी गलाकाटू होड़ है। मार्क्‍स ने कहा था कि पूंजीवाद अब तक की सबसे गतिमान उत्पादन पद्धति है और यह अपनी छवि के अनुरूप एक विश्व रचना कर डालता है। पूँजीवाद ने धर्म के साथ ऐसा ही किया है। इसने इसे पूंजीवादी धर्म में इस क़दर तब्दील कर दिया है कि धर्म स्वयं एक धन्‍धा बन गया है और इससे अलग और कोई उम्मीद भी नहीं की जा सकती है। (मजदूर बिगुल से साभार)

एच. आनंद शर्मा

H. Anand Sharma is active in journalism since 1988. During this period he worked in AIR Shimla, daily Punjab Kesari, Dainik Divya Himachal, daily Amar Ujala and a fortnightly magazine Janpaksh mail in various positions in field and desk. Since September 2011, he is operating himnewspost.com a news portal from Shimla (HP).

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