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दिल्ली में लाखों मजदूरों का हल्ला बोल

नई दिल्ली। केंद्र सरकार की मजदूर- किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ लाखों मजदूरों ने दिल्ली में संसद के बाहर तीन दिन धरना प्रदर्शन किया और सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। सबसे अधिक विरोध नोटबंदी और जीएसटी का हुआ। सभी वक्ताओं ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार ने नोटबंदी और जीएसटी के द्वारा मजदूरों- किसानों के पेट में लात मारी है और सरकार की कुनीतियों के कारण समाज के कमजोर तपकों की जीना दूभर हो गया है। 

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देश की 10 बड़ी ट्रेड यूनियनों से जुड़े मजदूरों ने प्रस्तावित तीन दिवसीय कार्यक्रम के तहत 9 नवंबर से दिल्ली में संसद के बाहर पड़ाव डालना शुरू कर दिया था, जिसमें 10 और 11 नवंबर तक प्रदर्शनकारियों की संख्या लाखों तक पहुंच गई थी। जिन मजदूर यूनियनों ने आंदोलन में भाग लिया उनमें- Centre of Indian Trade Unions (CITU), All India Trade Union Congress, Hind Mazdoor Sabha, All India United Trade Union Centre, Trade Union Coordination Centre, Self Employed Women’s Association, All India Central Council of Trade Unions, United Trade Union Congress, और the Labour Progressive Federation शामिल थे। भाजपा से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (भामसं) ने स्वयं को इस धरना प्रदर्शन से दूर रखा।

आंदोलनकारियों को सीपीआई-एम की पोलित ब्यूरो सदस्य वृंदा करात, कम्युनिस्ट पार्टी (माले) की सदस्य कविता कृष्णन सहित अनेक नेताओं ने संबोधित किया और सरकार पर आरोप लगाया कि वह मजदूरों की न्यूनतम दिहाड़ी, सामाजिक सुरक्षा जैसे 12 सूत्रीय मांग पत्र पर कोई ध्यान नहीं दे रही है, जिससे गरीब मजदूरों के प्रति सरकार की नीयत साफ नजर नहीं आ रही।

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार केवल अडानी, अंबानी जैसे बड़े कारपोरेटरों को ही लाभ पहुंचाने में लगी है। आम जनता की ओर इसका कोई ध्यान नहीं है। इसी के परिणाम स्वरूप देश में अमीर बेतहाशा अमीर और गरीर बहुत गरीब होते जा रहे हैं।

मजदूर यूनियनों के इस धरना प्रदर्शन में देश की अनेक जानी मानी हस्तियों ने भी उपस्थिति दर्ज कराई। इनमें विख्यात लेखक कृष्णा सोबती और गीथा हरिहरन, फिल्म निर्माताराहुल रॉय, जेएनयू के प्रोफेसर आयशा किदवई और सफाई कर्मचारी आंदोलन के संस्थापक बेजवाडा विल्सन आदि प्रमुख थे।

एचएनपी सर्विस

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