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चीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था, अमरीका नं. दो पर

लंदन। पिछले 140 सालों में यह पहली बार हुआ है। अमरीका ने दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का रुतबा खो दिया है।

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अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के मुताबिक़ अब यह हैसियत चीन के पास है। बीबीसी के आर्थिक मामलों के संपादक रॉबर्ट पेस्टन बता रहे हैं कि आख़िर चीन क्यों हम सबके लिए मायने रखता है। चीन की मौजूदा अर्थव्यवस्था 17.6 ट्रिलियन डॉलर की है, जबकि आईएमएफ़ ने अमरीका के लिए 17.4 ट्रिलियन का अनुमान लगाया है।

वर्ष 1872 में अमरीका ने ब्रिटेन को पीछे छोड़ते हुए दुनिया की सभी अर्थव्यवस्थाओं में अपनी अव्वल जगह बनाई थी। इसके बाद से यह पहला मौका है जब उसकी जगह छिनती हुई दिख रही है। आईएमएफ़ इन आंकड़ों तक मुद्रा की खरीद क्षमता (पीपीपी) का हिसाब किताब लगाकर पहुंचा है।

हिसाब किताब में इस बात का ख्याल रखा गया है कि किसी मुद्रा से अलग-अलग देशों में क्या-क्या और कितना कुछ ख़रीदा जा सकता है। और जैसे ही मुद्रा की यह तुलना अमरीका और चीन के संदर्भ में होती है तो चीन का ग्राफ़ ऊपर चढ़ जाता है।

मुद्रा की क्रय शक्ति (पीपीपी) का हिसाब लगाने से पहले आईएमएफ़ ने चीन की अर्थव्यवस्था को 10.3 ट्रिलियन डॉलर से भी कम का आंका था। इसके साथ ही एक सवाल कई लोग पूछते हैं कि चीन के सकल घरेलू उत्पाद के बारे में दी गई सरकारी सूचनाओं की विश्वसनीयता पर किस हद तक भरोसा किया जा सकता है।

चीन के मौजूदा प्रधानमंत्री ली कचियांग अतीत में ख़ुद ही इन आंकड़ों की विश्वसनीयता पर संदेह जता चुके हैं। एक अमरीकी गुप्त दस्तावेज़ के सार्वजनिक होने के बाद पता चला कि साल 2007 में चीन के लियाउनिंग प्रांत के तत्कालीन महासचिव ली कचियांग ने अमरीकी राजदूत को बताया था कि चीन की जीडीपी से जुड़े आंकड़ें ‘मानव निर्मित‘ हैं और इनकी अहमियत केवल ‘संदर्भ भर के लिए‘ है।

लेकिन ‘मिथ बस्टिंग चाइनाज़ नंबर्स‘ के लेखक मैथ्यू क्रैब ज़ोर देकर कहते हैं कि 1.36 अरब की आबादी वाले देश को वाकई में दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होना चाहिए। उन्होंने चीन की अर्थव्यवस्था से जुड़े तथ्यों और आंकड़ों पर 20 साल से भी ज़्यादा समय तक काम किया है।

चीन के इस नए ख़िताब पर वह कहते हैं, “अगर आप चीन की प्रति व्यक्ति ख़र्च क्षमता पर नज़र डालें तो यह न केवल अमरीका से पीछे है बल्कि तुर्कमेनिस्तान और सूरीनाम जैसे देशों से भी कम है।” मैथ्यू क्रैब बताते हैं कि साल दर साल चीन के प्रांतों के जीडीपी आंकड़े राष्ट्रीय जमा से भी ज़्यादा बन रहे हैं जो न तो तर्क की और न ही गणित की कसौटी पर खरे उतरते हैं।

निवेश का फैसला मैथ्यू इस विरोधाभास के लिए भ्रष्टाचार को भी ज़िम्मेदार बताते हैं। उनका कहना है कि चीनी अर्थव्यवस्था से जुड़ी ये विसंगतियां देश के बड़े आकार और उसकी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था की वजह से भी बढ़ जाती हैं। जीडीपी के मिलावटी आंकड़ों के नतीजे उन कंपनियों के लिहाज से ख़राब हो सकते हैं जिन्होंने अपने निवेश का फ़ैसला इसी आधार पर लिया था।

बीबीसी के इकॉनॉमिक्स एडिटर रॉबर्ट पेस्टन कहते हैं कि पिछले 30 सालों में और अगले पांच सालों में चीन की विकास दर दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण संख्या है। पिछले 30 सालों में चीन ने चौंका देने वाली रफ़्तार से तरक़्क़ी की है, लेकिन 2008 में जब विश्व अर्थव्यवस्था मुश्किल भरे दौर से गुजर रही थी तब इसे भी झटके लगे थे।                                            (बीबीसी हिंदी डॉट कॉम से साभार )

एच. आनंद शर्मा

H. Anand Sharma is active in journalism since 1988. During this period he worked in AIR Shimla, daily Punjab Kesari, Dainik Divya Himachal, daily Amar Ujala and a fortnightly magazine Janpaksh mail in various positions in field and desk. Since September 2011, he is operating himnewspost.com a news portal from Shimla (HP).

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