नई दिल्ली। माओवादियों ने छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में तैनात सरकारी कर्मचारियों और शिक्षकों से कहा है कि वे चुनावी प्रतिनियुक्ति से खुद को अलग रखें
केंद्र और राज्य सरकार के बीच हुए इस पत्राचार में कहा गया है कि माओवादी चुनाव के दिन हेलीकॉप्टरों को भी अपना निशाना बना सकते हैं और मतदान केन्द्रों के आसपास विस्फोट भी कर सकते हैं। वर्ष 2008 में हुए विधानसभा के चुनाव के दौरान माओवादियों ने भारतीय वायुसेना के एक हेलीकाप्टर को निशाना बनाया था, जिसमें एक पायलट और सीमा सुरक्षा बल के आठ जवानों की मौत हो गई थी। सुरक्षा एजेंसियों को आशंका है कि माओवादी इस तरह के हमले इस बार विधानसभा के चुनाव में दोहरा सकते हैं।
केंद्रीय बलों की 400 कंपनियां तैनातः केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ में चुनाव के लिए केंद्रीय बलों की 400 कंपनियां उपलब्ध कराई हैं। इन्हें ज़्यादातर उन इलाकों में तैनात करने की योजना है जहाँ माओवादियों का नियंत्रण है या फिर जहाँ संघर्ष चल रहा है। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का कहना है कि राज्य प्रशासन और चुनाव आयोग सुरक्षा बलों की तैनाती में सावधानी बरत रहे हैं। उनका कहना है कि ये आशंका तो है कि तैनाती के वक़्त माओवादी सुरक्षा बलों पर हमले कर सकते हैं, लेकिन मतदान केन्द्रों में प्रतिनियुक्त होने वाले सुरक्षा बल के जवान और मतदान कर्मियों पर ज़्यादा हमले हो सकते हैं।
छत्तीसगढ़ में माओवादियों के बहिष्कार के बीच चुनाव कराना चुनाव आयोग के सामने बड़ी चुनौती रही है। बस्तर में माओवादियों के नियंत्रण वाले इलाकों में मतदान केंद्र बनाना भी बहुत मुश्किल काम है। बहिष्कार की वजह से ही ज़्यादातर जंगली इलाकों में मतदान का प्रतिशत नगण्य ही रहता है। सुरक्षा कारणों से इस बार कई मतदान केन्द्रों को दूसरी जगहों पर स्थानांतरित भी किया जा रहा है।
बस्तर में तैनात पुलिस अधिकारियों का कहना है कि माओवादियों ने कई इलाकों में पर्चे फ़ेंक कर आम लोगों से मत नहीं डालने की अपील की है। इन पर्चों में राजनीतिक कार्यकर्ताओं को प्रचार नहीं करने की धमकी भी दी गयी है। कुछ इलाकों से पुलिस ने ऐसे कई पर्चे ज़ब्त भी किए हैं।
छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक मुकेश गुप्ता ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि इस बार प्रशासन को लगता है चुनाव के दौरान नक्सली हिंसा में तेज़ी आ सकती है। उनका कहना है, “ये प्रतिक्रिया स्वाभाविक है क्योंकि पुलिस ने माओवादियों को काफी पीछे धकेल दिया है। लगातार चले अभियानों की वजह से माओवादी काफी कमज़ोर हो गए हैं। यही वजह है कि वो ज़्यादा आक्रामक रूप में सामने आ सकते हैं।”
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