शिमला। ‘गुड़िया’ रेप एंड मर्डर केस में सीबीआई ने बड़ी कार्रवाई करते हुए एसआईटी प्रमुख आईजी जहूर एच जैदी और डीएसपी मनोज जोशी समेत 8 पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों को गिरफ्तार किया है। इन लोगों पर संबंधित केस और पुलिस लॉकअप में हुई नेपाली युवक की हत्या के असली अपराधियों को बचाने का आरोप है।
कोटखाई में गत 4 जुलाई को एक नाबालिग स्कूली छात्रा को अज्ञात लोगों ने अगवा कर उसके साथ गैंगरेप किया और फिर उसकी हत्या कर दी थी। इस केस की जांच में पुलिस की संदिग्ध कार्यप्रणाली के विरोध में पूरे प्रदेश की जनता आंदोलन में सड़कों पर उतर आई थी। लोगों का आरोप था कि पुलिस राजनीतिक दबाव में असली मुजरिमों को बचाने का प्रयास कर रही है। आक्रोषित जनता ने न केवल कोटखाई थाने को जलाने की कोशिश की बल्कि दो बार शिमला में सचिवालय पर भी धावा बोला। इस पर सरकार ने मामले की जांच के लिए पहले एसआईटी का भी गठन किया, जिसकी कमान आईजी जहीर एच जैदी को सौंपी गई थी।
इसी दौरान कोटखाई थाने में एक अभियुक्त नेपाली युवक की हत्या हो गई, जिससे जनता का आक्रोश सातवें आसमान पर पहुंच गया था। सूत्रों के अनुसार नेपाली युवक ‘गुड़िया’ मामले में सरकारी गवाह बनने के लिए तैयार हो गया था। आरोप है कि इसी कारण उसकी पुलिस लॉकअप में हत्या कर दी गई।
आंदोलनकारियों की मांग पर अंततः सरकार को इस मामले की सीबीआई जांच के आदेश देने पड़े थे। पुलिस पर यह भी आरोप लगे कि उसने मामला सीबीआई को सौंपने से पहले ही काफी साक्ष्य भी नष्ट कर दिए थे, जिस कारण सीबीआई को जांच में काफी समय लग गया।
सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए गए पुलिस अधिकारियों व कर्मचारियों में आईजी जहूर ए. जैदी, डीएसपी मनोज जोशी, एसएचओ राजेंद्र सिंह, एएसआई दीप चंद, एक कांस्टेबल रंजीत सिंह व तीन हेड कांस्टेबल- सूरत सिंह, मोहन लाल, व रफीक अली शामिल हैं। इन गिरफ्तारियों ने अब साफ कर दिया है कि पुलिस जांच में अवश्य कुछ गड़बड़ी हुई है।
बताया जाता है कि सीबीआई को पुलिस लॉकअप के एक गार्ड ने ऐसा बयान दिया जो पुलिस की पूर्व रिपोर्ट से मेल नहीं खाता था। इस कर्मचारी ने बयान में यह भी कहा था कि पूर्व में पुलिस अधिकारियों ने उससे एक लिखित बयान पर हस्ताक्षर कराए थे, जबकि उसने वैसा कोई बयान नहीं दिया था। सीबीआई को सबसे पहले यहीं से पुलिस की कार्यप्रणाली पर संदेह हुआ और पुख्ता सबूत मिलने पर इन अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया।