वर्तमान में यहां सेब की जो किस्में प्रचलित हैं उनके लिए सर्दियों में चिलिंग जरूरत 1200 से 1800 घंटे तक रहती है। लेकिन विभिन्न देशों में सेब की ऐसी आधुनिक किस्में भी प्रचलित हैं, जिनकी चिलिंग रिक्वायरमेंट मात्र 200 से 300 घंटे ही हैं। ऐसी किस्में आयात होने के बाद यहां पूरे प्रदेश में सेब की बागवानी संभव हो सकेंगी। यदि बागवानी विभाग का यह प्रयोग सफल रहा तो ही हिमाचल सही मायनों में ‘सेब राज्यÓ कहलाने का हकदार होगा।
विभागीय सूत्रों के अनुसार बागवानी विभाग विदेशों से सेब, नाशपाती, चैरी और अखरोट के 65 हजार पौधे मंगवाने जा रहा है। इसके लिए विभाग ने निविदा प्रक्रिया पूरी कर ली है। इस साल ये पौधे विभाग और बागवानी विश्वविद्यालय नौणी की नर्सरी में लगाए जाएंगे। अगले साल तक इन्हें बागवानों को उपलब्ध करवाने की योजना है।
खास बात यह है कि सेब की सभी वैरायटियां एमला सीरीज के रूट स्टाक पर तैयार हैं। इस सीरीज को वायरस फ्री माना जाता है। हर बागवान को नई किस्मों के पौधे मिले, इसके लिए विभाग ने एक कार्ययोजना तैयार की है। वैरायटियों का एक सेट तैयार कर इन्हें विकास खंडों पर उपलब्ध कराया जाएगा। बागवान इन वैरायटियों को मदर ट्री के रूप में लगा कर इन्हें मल्टीप्लाई कर सकेंगे।
सेब की जिन वैरायटियों को विभाग ने मंगवाया है उनमें सुपर चीफ, स्कारलेट स्पर-टू, शैलेट स्पर, एडम्स स्पर, अर्ली रेट वन, जिंजर गोल्ड, रेड फ्यूजी, अन्ना, डोरसेट गोल्डन, फ्यूजी जेन और फ्यूजी कीकू शामिल हैं। इनमें से कुछ वैरायटियां हिमाचल में पहले से भी लगी हैं। लेकिन एमला सीरीज पर तैयार पौधे विभाग पहली बार आयात करने जा रहा है। ये पौधे एम्ला 106, 7 और 793 रूट स्टाक पर तैयार हैं। अन्ना और डोरसेट जैसी वैरायटियां गर्म इलाकों के लिए उपयुक्त हैं। ये किस्में इजराइल जैसे गर्म क्षेत्रों में भी बढिय़ा पैदावार दे रही हैं।
नाशपाती में पेखमथ्रम्पस और कोरइला किस्में मंगवाई गई हैं। ये वैरायटियां क्वीन्स-ए रूट स्टाक और सीडलिंग पर तैयार हैं, जबकि चैरी में गजेला-5 रूट स्टाक पर तैयार एटिका और रेगिना किस्मों के पौधों को मंगवाया जा रहा है। अखरोट की सीडलिंग पर तैयार तीन किस्में सेंडलर, होवर्ड और सीको मंगवाई गई हैं।
अन्ना
अन्ना सेब लोअर बेल्ट के लिए उपयुक्त वैरायटी है। दक्षिणी-पश्चिमी क्षेत्रों यानी रेतीली भूमि में भी इसके पौधे कामयाब हो सकते हैं। इसमें फसल जल्दी आ जाती है। इसकी चिलिंग जरूरत काफी कम है। इजराइल जैसे देशों में भी इससे फसल ली जा रही है। अन्ना के लिए सिर्फ 200 से 300 घंटे चिंलिंग आवर्स की जरूरत होती है। ऐसे में हिमाचल के निचले गर्म क्षेत्रों में भी इन्हें लगाया जा सकेगा।
रेड फ्यूजी
यह वैरायटी ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है। इसमें फसल काफी अच्छी लगती है और विदेशों में इस सेब को सबसे ज्यादा पसंद किया जाता है। इसकी शैल्फ लाइफ ज्यादा है। कोल्ड स्टोर के बिना भी यह 5-6 महीने तक रह सकता है। चीन और जापान में यह वैरायटी सबसे लोकप्रिय है।
फ्यूजी कीकू
इस वैरायटी के साथ गाला और रेड डिलीशियस परागण के लिए जरूरी है। इसका फल मध्यम और बड़े आकार का होता है। यह वैरायटी गोलाकार है। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में इस सेब में बढिय़ा रंग आता है। प्रदेश में किन्नौर जैसे ऊंचाई वाले क्षेत्रों के लिए इसे सबसे बढिय़ा माना जा सकता है।
डोरसेन गोल्डन
यह वैरायटी भी लोअर बैल्ट के लिए उपयुक्त है। इसकी चिलिंग जरूरत सिर्फ 250 घंटे की है। अन्ना किस्म के साथ इसका परागण हो तो इसमें भरपूर फसल आती है। इस सेब का रंग किन्नौरी गोल्डन से मिलती जुलता है।
निचले क्षेत्रों में भी लहलहाएंगे सेब के बागीचे
हिमाचल प्रदेश में निकट भविष्य में ही निचले गर्म इलाकों में भी सेब की फसलें लहलहा सकेंगी। बागवानी विभाग विदेशों से सेब, नाशपाती, चेरी और अखरोट की ऐसी किस्में आयात करने जा रहा है, जिन्हें प्रदेश के बिलासपुर, ऊना, कांगड़ा, हमीरपुर जैसे गर्म क्षेत्रों में भी सफलतापूर्वक उगाया जा सकेगा। इस समय सेब प्रदेश के ऊपरी एवं मध्यवर्ती क्षेत्रों में ही सफलतापूर्वक उगाया जा रहा है।
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