देहरादून। कृषि, पर्यावरण एवं मानवीय जीवन के लिए घातक गाजर घास देश में 35 मिलियन हेक्टेअर भूमि पर अपना कब्जा जमा चुकी
वनस्पति विज्ञान में पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस के नाम से जानी जाने वाली गाजर घास मूल रूप से अमेरिका, दक्षिण अफ्रीका और मैक्सिको में पाई जाने वाली घास है। भारत में इसकी पहचान पहली बार वर्ष 1984 में हुई। यहां इसे कांग्रेस घास भी कहा जाता है।
विगत में अमेरिका से आयात किए गए गेहूं के साथ भारत आए थे गाजर घास के बीज। इस घास को यहां की भूमि इतनी मुफीद लगी कि यह समुद्र तटीय इलाकों से मध्य हिमालय तक तेजी से फैलती गई। महज एक दशक के भीतर ही कृषि, पर्यावरण और मानव स्वास्थ को पहुंचने वाले खतरे को देखते हुए गाजर घास के उन्मूलन को लेकर देश भर में तमाम अभियान शुरू हुए, परंतु इसमें अब तक केवल नाकामी ही हाथ लगी है। और अब तो यह घास देश के मैदानी और पहाड़ी इलाकों के 35 मिलियन हेक्टेअर भूमि पर अपना कब्जा जमा चुकी है। चिंताजनक बात यह है कि इसका फैलाव लगातार बढ़ता जा रहा है और यह कृषि भूमि को बंजर करती जा रही है।
गाजर घास भी काला जड़िया (मैक्सिकन डेविल) की तरह अपने आसपास किसी अन्य वनस्पति को उगने नहीं देती है। यह घास उपजाऊ कृषि भूमि के साथ ही वनों में भी तेजी से फैल रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि कृषि क्षेत्र में इसके फैलाव का असर खाद्यान्न उत्पादन पर पड़ सकता है।
गाजर घास मानव स्वास्थ के लिए भी ठीक नहीं है। रिहायशी इलाकों के आसपास बंजर पड़ी भूमि में इसका अत्यधिक फैलाव रहता है। इसके सम्पर्क में आने से त्वचा संबंधी रोग होते हैं। एमडी आयुर्वेद डा.नवीन चन्द्र जोशी कहते हैं कि गाजर घास के कारण एलर्जी और आंखों में जलन की समस्या पैदा होती है। हालांकि इस घास में कुछ औषधीय गुण भी पाये गए हैं, लेकिन इसके कृषि, पर्यावरण और मानव स्वास्थ पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के कारण यह मेडिसिनल गुण हाशिये पर चले जाते हैं।
इस समय विशेषज्ञों का पूरा जोर इसके उन्मूलन पर लगा हुआ है। लोगों को जागरूक करने के साथ ही वर्मी कम्पोस्ट बनाने व जाइगोग्रामा कीट का प्रयोग कर इसे नष्ट करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन यह प्रयोग कितना कारगर होगा, इसे लेकर विशेषज्ञ भी आशंकित ही हैं।
कृषि विज्ञान केन्द्र बागेश्वर के कार्यक्रम समन्वयक डा.विजय अविनाशीलिंगम कहते हैं, “गाजर घास का तेजी से फैलना चिंताजनक है। यह घास कृषि व पर्यावरण के साथ ही मानव और पशुओं के लिए भी हानिकारक है। इसका फैलाव बढ़ा तो कृषि की पैदावार कम हो जाएगी। इस घास में फूल निकलने से पहले जड़ सहित उखाड़कर ही पूरी तरह नष्ट किया जा सकता है। इसके उन्मूलन को लेकर प्रयास किए जा रहे हैं। ”